संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में
सर्व समाज पाणिग्रहण संस्कार,
दिव्य अनुष्ठान सदृश महत्ता ।
श्री वंदित मर्यादा परंपरा,
सुसंचालन कारक सृष्टि सत्ता ।
पर विगत कुछ वर्ष अंतर,
योग्य वर परिभाषा दर्शन स्वाह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।
हर वधु मात पिता दिग्भ्रमित,
ध्येय सरकारी सेवक चाहना।
विस्मृत कर चाल चरित्र गुण,
बस अभिलाषा निर्मूल सराहना ।
राजकीय सेवा मृग मरीचिका सम,
अनंत सर्वश्रेष्ठ वर निजी क्षेत्र गाह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।
लघु मानसिकता परिणाम,
वर वधु परिणय वय पार ।
असंतुलित दांपत्य जीवन ,
विचलन पथ आहार विहार ।
समाज समक्ष ज्वलंत प्रश्न,
अब उत्तर बिंब हर निगाह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।
समुदाय पटल हर काम उत्तम,
अनंत जीविका श्रोत माध्य ।
नैतिक कर्तव्य निर्वहन संग,
हर पल प्रेम खुशियां साध्य ।
चिंतन मनन बेला बुद्धिजीवी वृंद ,
प्रदत्त सही मार्गदर्शन वैवाहिकी राह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।
महेन्द्र कुमार(स्वरचित मौलिक रचना)
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