फूटपाथ की दूकानों सा
डॉ रामकृष्ण मिश्रफूटपाथ की दूकानों सा
अनियत क्षणिक बसेरा।
समय खाँच में साँच रहा
कज्जल सा घुप्प अँधेरा।।
पल-पल पर आग्रही भाव के
टोहे जाते ग्राहक।
मोल- जोल के बटखारे से
तुलते रहते नाहक।।
आँखों में तस्वीर उजाले की
है आ कर घेरा।।
आस पास की चिकनाई में
कडुआपन हँसता है।
मीठे पानी के कूएँ में
दुष्ट साँप रहता है।।
श्रम के आलिसान भवनों में
उल्लू करे बसेरा।।
धमन भट्ठियों में देखा क्या
किसका जलता है तन।
बर्फ सिल्लियों बीच बैठ होता
प्रसन्न किसका मन।।
बीन बजाता मगन मगन
मुस्काता खूब सपेरा।। **********
रामकृष्ण
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कज्जल सा घुप्प अँधेरा।।
पल-पल पर आग्रही भाव के
टोहे जाते ग्राहक।
मोल- जोल के बटखारे से
तुलते रहते नाहक।।
आँखों में तस्वीर उजाले की
है आ कर घेरा।।
आस पास की चिकनाई में
कडुआपन हँसता है।
मीठे पानी के कूएँ में
दुष्ट साँप रहता है।।
श्रम के आलिसान भवनों में
उल्लू करे बसेरा।।
धमन भट्ठियों में देखा क्या
किसका जलता है तन।
बर्फ सिल्लियों बीच बैठ होता
प्रसन्न किसका मन।।
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