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संजीवनी हो

संजीवनी हो

ये मोहब्बत है या पागलपन
मुझे कहने में शर्म आ रही है।
देखकर तेरे होठों की मुस्कान
मुझको भी हंसी आ रही है।
तेरे साँवले से चेहरे पर मुझे
एक चाँद नजर आ रहा है।
बिखरी हुई बालों की लटाओं में
ये चाँद छुपा जा रहा है।।


आज फिर से जो तुमको
देखा हमने उसी अंदाज में।
जैसे देखा था शाहजहाँ ने
चाँदनी रात में मुमताज को।
उसी रात की याद में उसने
एक स्मारक बनवा दिया।
जिसे प्रेमी-प्रेमिकायें कहते है
मोहब्बत का प्रतीक ताज महल।।


प्यार मोहब्बत के किस्सों को
अब देते है हम विराम।
और दिलों में मोहब्बत का
एक दीपक जला देते है।
और इस चाँद से चेहरे को
अपने दिलमें बैठा लेते है।
और जीवन की बागिया को
फूलों जैसा महका देते है।।


सुंदर और मन मोहिनी हो
शीतल और तुम छाया हो।
रात की तुम रानी हो
खुशबू का भंडार हो।
तारों के बीच में तुम
लगती महारानी हो।
और मेरे जीवन की तुम
सबसे बड़ी संजीवनी हो..।
सबसे बड़ी संजीवनी हो।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना"
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