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उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा विशेष

उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा विशेष

आनन्द हठीला 
हिमालय पर स्थित छोटा चार धाम (जिसकी चर्चा चार धाम यात्रा में आगे की जाएगी) मंदिरों में भी बद्रीनाथ ज्‍यादा महत्‍व वाला और लोकप्रिय है। इस छोटे चार धाम में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ (शिव मंदिर), यमुनोत्री एवं गंगोत्री (देवी मंदिर) शमिल हैं। यह चारों धाम हिंदू धर्म में अपना अलग और महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखते हैं। बीसवीं शताब्दि के मध्‍य में हिमालय की गोद में बसे इन चारों तीर्थस्‍थलों को छोटा' विशेषण दिया गया जो आज भी यहां बसे इन देवस्‍थानों को परिभाषित करते हैं। छोटा चार धाम के दर्शन के लिए 4000 मीटर से भी ज्‍यादा ऊंचाई तक की चढ़ाई करनी होती है। यह डगर कहीं आसान तो कहीं बहुत कठिन है।
1962 के पहले यहां की यात्रा करना काफी कठिन था। परंतु चीन के साथ हुए युद्ध के उपरांत ज्‍यों-ज्‍यों सैनिकों की आवाजाही बढ़ी वैसे ही तीर्थयात्रियों के लिए रास्‍ते भी आसान होते गए। बाद में किसी भी तरह के भ्रम को दूर करने के लिए 'छोटा' शब्‍द को हटा दिया गया और इस यात्रा को 'हिमालय की चार धाम' यात्रा के नाम से जाना जाने लगा है। आवागमन के साधन में सुधार होने के साथ ही भारत के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए यह एक प्रमुख तीर्थस्‍थल बन गया है। मानसून आने के दो महीने पहले तक पयर्टकों, तीर्थयात्रियों की जबर्दस्‍त आवाजाहि रहती है। बारीश् के मौसम में यहां जाना खतरनाक माना जाता है, क्‍योंकि इस दौरान भूस्‍खलन की संभावना सामान्‍य से ज्‍यादा रहती है।
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हिंदुओं के सबसे पवित्र स्‍थान हैं। इनको चार धाम के नाम से भी जाना जाता हैं। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जो पुण्‍यात्‍मा यहां का दर्शन करने में सफल होते हैं उनका न केवल इस जनम का पाप धुल जाता है वरन वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्‍त हो जाते हैं। इस स्‍थान के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्‍थल है जहां पृथ्‍वी और स्‍वर्ग एकाकार होते हैं। तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) और गंगोत्री (गंगा) का दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारेश्‍वर पर जलाभिषेक करते हैं। इन तीर्थयात्रियों के लिए परंपरागत मार्ग इस प्रकार है -:
हरिद्वार - ऋषिकेश - देव प्रयाग - टिहरी - धरासु - यमुनोत्री - उत्तरकाशी - गंगोत्री - त्रियुगनारायण - गौरिकुंड - केदारनाथ।

यह मार्ग परंपरागत हिंदू धर्म में होने वाले पवित्र परिक्रमा के समान है। जबकि केदारनाथ जाने के लिए दूसरा मार्ग ऋषिकेश से होते हुए देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, अगस्‍तमुनी, गुप्‍तकाशी और गौरिकुंड से होकर जाता है। केदारनाथ के समीप ही मंदाकिनी का उद्गम स्‍थल है। मंदाकिनी नदी रूद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है।

यमुनोत्री

बांदरपूंछ के पश्चिमी छोर पर पवित्र यमुनोत्री का मंदिर स्थित है। परंपरागत रूप से यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद यमुनोत्री पहुंचा जा सकता है। यहां पर स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दि में करवाया था। यह मंदिर (3,291 मी.) बांदरपूंछ चोटि (6,315 मी.) के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना सूर्य की बेटी थी और यम उनका बेटा था। यही वजह है कि यम अपने बहन यमुना में श्रद्धापूर्वक स्‍नान किए हुए लोगों के साथ सख्‍ती नहीं बरतता है। यमुना का उदगम स्‍थल यमुनोत्री से लगभग एक किलोमीटर दूर 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री ग्‍लेशियर है।

यमुनोत्री मंदिर के समीप कई गर्म पानी के सोते हैं जो विभिन्‍न पूलों से होकर गुजरती है। इनमें से सूर्य कुंड प्रसिद्ध है। कहा जाता है अपनी बेटी को आर्शीवाद देने के लिए भगवान सूर्य ने गर्म जलधारा का रूप धारण किया। श्रद्धालु इसी कुंड में चावल और आलू कपड़े में बांधकर कुछ मिनट तक छोड़ देते हैं, जिससे यह पक जाता है। तीर्थयात्री पके हुए इन पदार्थों को प्रसादस्‍वरूप घर ले जाते हैं। सूर्य कुंड के नजदीक ही एक शिला है जिसको 'दिव्‍य शिला'के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री यमुना जी की पूजा करने से पहले इस दिव्‍य शिला का पूजन करते हैं। यमुनोत्री धाम वह धाम है जहाँ भक्त अपनी चारधाम यात्रा में सबसे पहले जाते हैं। यह धाम देवी यमुना को समर्पित है जो सूर्य की बेटी और यम (यमराज) की जुड़वां बहन थी। यह धाम यमुना नदी के तट पर स्थित है जिसका उधगम स्थल कालिंद पर्वत निकल रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार - एक बार भैया दूज के दिन, यमराज ने देवी यमुना को वचन दिया कि जो कोई भी नदी में डुबकी लगाएगा उसे यमलोक नहीं ले जाया जाएगा और इस प्रकार उसे मोक्ष प्राप्त होगा। और शायद यही कारण है कि यमुनोत्री धाम चारों धामों में सबसे पहले आता है। लोगों का मानना ​​है कि यमुना के पवित्र जल में स्नान करने से सभी पापों की नाश होता है और असामयिक-दर्दनाक मौत से रक्षा होती है। शीतकाल मए जगह दुर्गम हो जाने के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और देवी यमुना की मूर्ति/ प्रतीक चिन्ह को उत्तरकाशी के खरसाली गांव में लाया जाता है और अगले छह महीने तक माता यमुनोत्री की प्रतिमा, शनि देव मंदिर में रखी जाती है ।

ऊंचाई - 10,804 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन का समय - सुबह 6:00 बजे से रात 8:00 बजे तक घूमने के स्थान - दिव्य शिला, सूर्य कुंड, सप्तऋषि कुंड।

कैसे पहुंचे👉 आपको सबसे पहले जानकीचट्टी पहुंचना है जो उत्तरकाशी जिले में है और यमुनोत्री धाम तक पहुंचने के लिए 5-6 किमी का ट्रेक तय करना पड़ता है। यात्रा मार्ग - ऋषिकेश -> नरेंद्रनगर (16 किमी) -> चमाब (46 किमी) -> ब्रह्मखाल (15 किमी) -> बरकोट (40 किमी) -> स्यानाचट्टी (27 किमी) -> हनुमानचट्टी (6 किमी) -> फूलचट्टी (5 किमी) -> जानकीचट्टी (3 किमी) -> यमुनोत्री (6 किमी)।

गंगोत्री धाम
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गंगोत्री समुद्र तल से 9960 (3140 मी.) फीट की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री से ही भागीरथी नदी निकलती है। गंगोत्री भारत के पवित्र और आध्‍यात्मिक रूप से महत्‍वपूर्ण नदी गंगा का उद्गगम स्‍थल भी है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ के नाम पर इस नदी का नाम भागीरथी रखा गया। कथाओं में यह भी कहा गया है कि राजा भागीरथ ने ही तपस्‍या करके गंगा को पृथ्‍वी पर लाए थे। गंगा नदी गोमुख से निकलती है।


पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सूर्यवंशी राजा सागर ने अश्‍वमेध यज्ञ कराने का फैसला किया। इसमें इनका घोड़ा जहां-जहां गया उनके 60 हजार बेटों ने उन जगहों को अपने आधिपत्‍य में लेता गया। इससे देवताओं के राजा इंद्र चिंतित हो गए। ऐसे में उन्‍होंने इस घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सागर के बेटों ने मुनिवर का अनादर करते हुए घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कपिल मुनि को काफी दुख पहुंचा। उन्‍होंने राजा सागर के सभी बेटों को शाप दे दिया जिससे वे राख में तब्‍दील हो गए। राजा सागर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि द्रवित हो गए और उन्‍होंने राजा सागर को कहा कि अगर स्‍वर्ग में प्रवाहित होने वाली नदी पृथ्‍वी पर आ जाए और उसके पावन जल का स्‍पर्श इस राख से हो जाए तो उनका पुत्र जीवित हो जाएगा। लेकिन राजा सागर गंगा को जमीन पर लाने में असफल रहे। बाद में राजा सागर के पुत्र भागीरथ ने गंगा को स्‍वर्ग से पृथ्‍वी पर लाने में सफलता प्राप्‍त की। गंगा के तेज प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया। फलत: भगवान शिव ने गंगा को अपने जटा में लेकर उसके प्रवाह को नियंत्रित किया। इसके उपरांत गंगा जल के स्‍पर्श से राजा सागर के पुत्र जीवित हुए।


हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के लोग चंद्र पंचांग के अनुसार अपने पुर्वजों का श्राद्ध और पिण्‍ड दान करते हैं। मंदिर में प्रार्थना और पूजा आदि करने के बाद श्रद्धालु भगीरथी नदी के किनारे बने घाटों पर स्‍नान आदि के लिए जाते हैं। तीर्थयात्री भागीरथी नदी के पवित्र जल को अपने साथ घर ले जाते हैं। इस जल को पवित्र माना जाता है तथा शुभ कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। गंगोत्री से लिया गया गंगा जल केदारनाथ और रामेश्‍वरम के मंदिरों में भी अर्पित की जाती है। चारधाम यात्रा में अगला प्रमुख धाम गंगोत्री धाम है। यह मंदिर देवी गंगा को समर्पित है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र और सबसे लंबी नदी है। गोमुख ग्लेशियर गंगा / भागीरथी नदी का वास्तविक स्रोत है जो गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की दूरी पर है। कहा जाता है कि गंगोत्री धाम वह स्थान है जहाँ देवी गंगा पहली बार भागीरथ द्वारा 1000 वर्षों की तपस्या के बाद स्वर्ग से उतरी थीं। किवदंतियों के अनुसार, देवी गंगा धरती पर आने के लिए तैयार थीं लेकिन इसकी तीव्रता ऐसी थी कि पूरी पृथ्वी इसके पानी के नीचे डूब सकती थी। पृथ्वी को बचाने के लिए, भगवान शिव ने गंगा नदी को अपने जटा में धारण किया और गंगा नदी को धारा के रूप में पृथ्वी पर छोड़ा और भागीरथी नदी के नाम से जानी गयी। अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम, देवप्रयाग पर गंगा नदी को इसका नाम मिला। प्रत्येक वर्ष सर्दियों में, गोवर्धन पूजा के शुभ अवसर पर गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते है और माँ गंगा की प्रतीक चिन्हों को गंगोत्री से हरसिल शहर के मुखबा गांव में लाई जाती है और अगले छह महीनों तक वही रहती है।


ऊंचाई - 11,200 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन समय - सुबह 6:15 से दोपहर 2:00 बजे और दोपहर 3:00 से 9:30 बजे घूमने के स्थान - भागीरथ शिला, भैरव घाटी, गौमुख, जलमग्न शिवलिंग, आदि।


कैसे पहुंचे👉 गंगोत्री धाम पहुंचने के लिये आपको सबसे पहले उत्तरकाशी पहुंचना होगा। उत्तरकाशी पहुंचने के बाद आपको हरसिल और गंगोत्री के लिए बस / टैक्सी आसानी से मिल जाएगी। अगर आप गौमुख जाना चाहते हैं तो आपको गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी। यात्रा मार्ग - यमुनोत्री - ब्रह्मखाल - उत्तरकाशी - नेताला - मनेरी - गंगनानी- हरसिल-गंगोत्री।

केदारनाथ धाम
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केदारनाथ समुद्र तल से 11,746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के उद्गगम स्‍थल के समीप है। यमुनोत्री से केदारनाथ के ज्‍योतिर्लिंग पर जलाभिषेक को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। वायुपुराण के अनुसार भगवान विष्‍णु मानव जाति की भलाई के लिए पृथ्वि पर निवास करने आए। उन्‍होंने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस जगह पर पहले भगवान शिव का निवास था। लेकिन उन्‍होंने नारायण के लिए इस स्‍थान का त्‍याग कर दिया और केदारनाथ में निवास करने लगे। इसलिए पंच केदार यात्रा में केदारनाथ को अहम स्‍थान प्राप्‍त है। साथ ही केदारनाथ त्‍याग की भावना को भी दर्शाता है।

यह वही जगह है जहां आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में समाधि में लीन हुए थे। इससे पहले उन्‍होंने वीर शैव को केदारनाथ का रावल (मुख्‍य पुरोहित) नियुक्‍त किया था। वर्तमान में केदारनाथ मंदिर 337वें नंबर के रावल द्वारा उखीमठ, जहां जाड़ों में भगवान शिव को ले जाया जाता है, से संचालित हो रहा है। इसके अलावा गुप्‍तकाशी के आसपास निवास करनेवाले पंडित भी इस मंदिर के काम-काज को देखते हैं। प्रशासन के दृष्टिकोण इस स्‍थान को इन पंडितों के मध्‍य विभिन्‍न भागों में बांट दिया गया है। ताकि किसी प्रकार की परेशानी पैदा न हो।

केदारनाथ मंदिर न केवल आध्‍यात्‍म के दृष्टिकोण से वरन स्‍थापत्‍य कला में भी अन्‍य मंदिरों से भिन्‍न है। यह मंदिर कात्‍युरी शैली में बना हुआ है। यह पहाड़ी के चोटि पर स्थित है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्‍थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। इसका छत लकड़ी का बना हुआ है जिसके शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाह्य द्वार पर पहरेदार के रूप में नंदी का विशालकाय मूर्ति बना हुआ है। चारधाम यात्रा में तीसरा प्रमुख धाम केदारनाथ धाम है। केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों की सूची में, है और पंच-केदार में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। यह धाम हिमालय की गोद में और मंदाकिनी नदी के तट के पास स्थित है जो 8 वीं ईस्वी में आदि-शंकराचार्य द्वारा निर्मित है। किंवदंतियों के अनुसार, कुरुक्षेत्र की महान लड़ाई के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे, और इन पापो से मुक्त होने के लिये उन्होंने शिव की खोज शुरू की । परन्तु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । पांडवों से छिपने के लिए, शिव ने खुद को एक बैल में बदल दिया और जमीन पर अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन भीम ने पहचान लिया कि बैल कोई और नहीं बल्कि शिव है और उन्होंने तुरंत बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया। पकडे जाने के डर से बैल जमीन में अंतर्ध्यान हो जाता है और पांच अलग-अलग स्थानों पर फिर से दिखाई देता है- ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ ( जो आज पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है), शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। दीपावली के बाद, सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते है और शिव की मूर्ति को उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है जो अगले छह महीनों तक उखीमठ में रहती है। ऊंचाई - 11,755 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन समय - दोपहर 3:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक बंद रहता है और बाकी घंटों के लिए खुला रहता है। घूमने के स्थान - भैरव नाथ मंदिर, वासुकी ताल (8 किमी ट्रेक), त्रिजुगी नारायण, आदि कैसे पहुंचे - गौरीकुंड अंतिम पड़ाव है जहाँ कोई भी परिवहन वाहन जा सकता है। और गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंचने के लिए आपको 16 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी। अगर आप ट्रेकिंग से बचना चाहते हैं तो आप एक विकल्प यह है कि आप गुप्तकाशी / फाटा / गौरीकुंड आदि से हेलीकॉप्टर की उड़ान ले सकते हैं।(हेलीकाप्टर द्वारा चारधाम यात्रा) यात्रा मार्ग - रुद्रप्रयाग - गुप्तकाशी – फाटा- रामपुर – सीतापुर – सोनप्रयाग – गौरीकुंड - केदारनाथ (लगभग 24 किमी ट्रेक)।

बद्रीनाथ धाम
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बद्रीनाथ नर और नारायण पर्वतों के मध्‍य स्थित है, जो समुद्र तल से 10276 फीट (3133 मी.) की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी इस मंदिर की खूबसुरती में चार चांद लगाती है। ऐसी मान्‍यता है कि भगवान विष्‍णु इस स्‍थान ध्‍यनमग्‍न रहते हैं। लक्ष्‍मीनारायण को छाया प्रदान करने के लिए देवी लक्ष्‍मी ने बैर (बदरी) के पेड़ का रूप धारण किया। लेकिन वर्तमान में बैर का पेड़ तो बहुत कम मात्रा में देखने को मिलता है लेकिन बद्रीनारायण अभी भी ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है। नारद जो इन दोनों के अनन्‍य भक्‍त हैं उनकी आराधना भी यहां की जाती है।

कालांतर में जो मंदिर बना हुआ है उसका निर्माण आज से ठीक दो शताब्‍दी पहले गढ़वाल राजा के द्वारा किया गया था। यह मंदिर शंकुधारी शैली में बना हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 15 मीटर है। जिसके शिखर पर गुंबज है। इस मंदिर में 15 मूर्तियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में विष्‍णु के साथ नर और नारायण ध्‍यान की स्थिति में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था जिसका पुनरूद्धार बाद में आदि शंकराचार्य ने 8वीं शदी में किया। इस मंदिर में नर और नारायण के अलावा लक्ष्‍मी, शिव-पार्व‍ती और गणेश की मूर्ति भी है।

चारधाम यात्रा का चौथा और अंतिम धाम बद्रीनाथ धाम है। उप-महाद्वीप में बद्रीनाथ धाम सबसे पवित्र और दौरा किया गया धाम है। बद्रीनाथ मंदिर में हर साल 10 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करते हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जो अलकनंदा नदी के तट पर नर और नारायण पर्वत के बीच स्थित है। यह एकमात्र धाम है जो चारधाम और छोटा चारधाम दोनों का हिस्सा है। बद्रीनाथ मंदिर के अंदर, भगवान विष्णु की 1 मीटर लंबी काले पत्थर की मूर्ति है जो अन्य देवी-देवताओं से घिरा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति 8 स्वयंभू या स्वयं व्यक्त क्षेत्र मूर्ति में से एक है, जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी।

पौराणिक कथा के अनुसार

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एक बार भगवान विष्णु ने ध्यान के लिए एक शांत जगह की तलाश की और इस स्थान कर रहे थे और इस स्थान पर आ पहुंचे । यहाँ भगवान विष्णु अपने ध्यान में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें अत्यधिक ठंड के मौसम का भी एहसास नहीं हुआ । अतः इस मौसम से बचाने के लिये देवी लक्ष्मी ने खुद को एक बद्री वृक्ष (जुजुबे के रूप में भी जाना जाता है) में बदल लिया। देवी लक्ष्मी की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने इस स्थान का नाम "बद्रीकाश्रम" रखा। अन्य धामों की तरह, बद्रीनाथ धाम भी मध्य अप्रैल से नवंबर की शुरुआत तक, केवल छह महीने के लिए ही खुलता है। सर्दियों के दौरान, भगवान विष्णु की मूर्ति जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थानांतरित कर दी जाती है और अगले छह महीने तक वहाँ रहती है।


ऊंचाई - 10,170 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन समय - सुबह 4:30 बजे से 1:00 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक। घूमने के स्थान - तप्त कुंड, चरण पादुका, व्यास गुफ़ा (गुफा), गणेश गुफ़ा, भीम पुल, मैना गाँव, वसुधारा जलप्रपात आदि।

कैसे पहुंचे👉 आप सड़क मार्ग से या केदारनाथ से हेलीकाप्टर द्वारा बद्रीनाथ जा सकते हैं। यात्रा मार्ग - केदारनाथ - रुद्रप्रयाग - कर्णप्रयाग - नंदप्रयाग - चमोली - बिरही - पीपलकोटी - जोशीमठ - बद्रीनाथ।
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