निकाल दिया
टूट गया भरोसा जबदेखो जग वालों से।
तो जीवन में अब
क्या देखो शेष रहा।
रिश्ते टूटे नाते टूटे
टूट गए सब बंधन।
मुक्ति मिल गई अब
मुझको नश्वर शरीर से।।
कितनें प्रश्नो का उत्तर मैं
नहीं तलाश कर पाया हूँ।
क्या क्या लेकर आया था
क्या क्या लेकर जा रहा हूँ।
कितनी उम्मीदें कितने सपने
पूरे मैं कर पाया हूँ।
क्या पाया क्या खोया है
हिसाब छोड़े जा रहा हूँ।।
मान मिला सम्मान मिला
फिर भी जीवन आशांत रहा।
जितना मांगा उतना पाया
फिर भी मन उदास रहा।
तृष्णा की इस चाहत ने
जीवन को परेशान किया।
इसलिए तो भाग दौड़ में
पूरी जिंदगी निकाल दिया..
ऐसे ही निकाल दिया।।
जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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