लू की आहुतियों संग,रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी
उच्च उष्ण मरुस्थल अंतर,रज रज सरित ताप प्रवाह ।
विचलित जनमानस प्रभा,
सर्वत्र सावधानी बचाव अथाह ।
मानव सह जीव जंतु व्याकुल,
पेयजल हित दर्शित मारामारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।
बालू माटी तपीश अद्भुत ,
तज जीवन संग प्रीत ।
पेड़ पौधे खड़े साधक सम,
छाया माया आशा गीत ।
शांत विश्रांत परिवेश उत्संग,
हाव भाव सकल आज्ञाकारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।
अस्त व्यस्त अनिवार्य सेवाएं ,
विद्युत पेयजल गहन संकट ।
शासन प्रशासन चौकस बिंदु ,
उचित प्रबंध समस्या विकट ।
शीघ्र वैकल्पिक समाधान बिंब,
प्रयास संतुलित व्यवस्थाएं सारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।
उष्ण रूप रुद्र विकराल ,
प्रभावित जनजीवन रंग ढंग ।
विरान सदृश सड़क बाजार ,
शीतलता सानिध्य जीवन कंग ।
दर्श कर प्राणी जगत पीड़ा,
पेयजल सेवा हर मनुज नैतिक जिम्मेदारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।
महेन्द्र कुमार(स्वरचित मौलिक रचना)
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