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केकरा से दुख कहीं आपन

केकरा से दुख कहीं आपन,

केहू पतियात नईखे।
भर भर आंख लोर भरल बा,
खुल के रोवल जात नईखे।।
जिनिगी भर सबका के,
हम आपन बनवनी।
भाई भतिजा सब के,
गोद में खेलवनी।।
खाना अपना थाली के हम,
ये सब के खिलावत रहनी।
बहुत दिन अइसनो भ‌ईल ,
भुखे हम सुत जात रहनी।।
अब जब ना पाकेट में प‌इसा बा ,
ना शरीर में जोर रहल।
सेयान होके भा‌ई भतीजा,
सबे हमरा के छोड़ देहल।।
खटिया पर पड़ल पड़ल,
टुकुर टुकुर देखत बानी।
के हम के खाना दी,
के दिही एक लोटा पानी।।
कबो कबो हमार मन,
अइसन छटपटात बा।
अइसन बुझात बा कि,
प्रान निकलल जात बा।।
हे विधाता, अइसन दुख,
केहू के मत दीह।
घुट घुट के मरला से बढ़िया,
झट से प्रान हर लीह।। जय प्रकाश कुवंर
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