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"ख़ामोशी और सीलन से आंसू"

"ख़ामोशी और सीलन से आंसू"

सीलन से भरे दर्द, अंतस के पटल पर,
रिसते हैं खामोशी की तह में, घावों की तरह।
उसे आभास नहीं क्षण का, जीवन के संचार का,
उत्सव में मातम का, स्वयं की लाशों का।

अब शेष है खामोशी, गहराईयों में समाया,
दर्द का बोझ, सीने में दबाया।
यादों की गलियों में, भटकता बेचैन,
खोजता है सुकून, मगर मिलता है केवल दर्द का पैमाना।

आँखों में सूखे हुए आँसू, सीलन बनकर बहते हैं,
हर साँस के साथ, वेदना के गीत गाते हैं।
दिल टूट चुका है, उम्मीदें मिट चुकी हैं,
बस एक खालीपन है, जो जीवन को घेर चुका है।

कभी हँसी-खुशी से भरा घर, अब सूना लगता है,
हर कोना, हर दीवार, दर्द की कहानी कहता है।
उसकी चाहत, उसकी यादें, हर पल ताड़ती हैं,
सीलन भरे दर्द, जो कभी नहीं मिटते हैं।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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