भारत की 18 लोकसभाओं के चुनाव और उनका संक्षिप्त इतिहास, भाग 13
13 वीं लोकसभा - 1999 - 2004
1999 की 13 वीं लोकसभा के चुनाव 5 सितंबर से 3 अक्टूबर 1999 के बीच हुए । पहला मतदान 5 सितंबर को, दूसरा 11 सितंबर को, तीसरा 18 सितंबर को, चौथा 25 सितंबर को और अंतिम 3 अक्टूबर को संपन्न हुआ। पहली बार चुनाव को पांच चरणों में संपन्न कराया गया। अब से पहले कभी इतने चरणों में चुनाव संपन्न नहीं कराए गए थे। चुनाव में पारदर्शिता लाने और प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता पूर्वक अपना मतदान करने के लिए उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने की दृष्टि से इस निर्णय को बहुत ही उपयुक्त माना गया । इससे पहले ऐसी अनेक घटनाएं होती थीं जब लोग निम्न जातियों या वर्गों से जुड़े लोगों को मतदान स्थल तक जाने नहीं देते थे । यदि किसी कारण से वह पहुंच भी जाते थे तो मतदान नहीं करने देते थे। कई चरणों में चुनाव संपन्न कराने से इस प्रकार की अलोकतांत्रिक और मुठमर्दी की गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सफलता मिली। लोगों को मतदान स्थल पर पहुंचकर मतदान करने की सुविधा मिली। जिससे अनेक लोगों को यह आभास हुआ कि वह सचमुच एक लोकतांत्रिक देश में अपने मतदान करने के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं।
भाजपा को बढ़त मिली
कुल 545 सीटों पर चुनाव हुआ। इस लोकसभा का कार्यकाल 10 अक्टूबर 1999 से 6 फरवरी 2004 तक रहा।
इस लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी की 182 सीटें थीं। जबकि कांग्रेस को केवल 114 सीटों पर संतोष करना पड़ा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अर्थात बीजेपी के सहयोगी दलों को मिलाकर 270 सीटें हो रही थीं, जो कि बहुमत से मात्र तीन सीटें कम थीं। इस बार भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों की स्थिति पिछली लोकसभा से कुछ बेहतर थी। इस बार अटल बिहारी वाजपेयी जी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूर्ण किया। यह पहला अवसर था जब केंद्र में किसी गैर कांग्रेसी सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया था। वास्तव में इसका श्रेय अटल जी को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने गठबंधन धर्म के निर्वाह में अपने पूर्ण संयम ,संतुलन और धैर्य का परिचय दिया।
13वीं लोकसभा के पदाधिकारी गण
जिस समय 13वीं लोकसभा के चुनाव हुए उस समय देश के राष्ट्रपति डॉ के0 आर0 नारायणन थे।
13वीं लोकसभा के अध्यक्ष अर्थात स्पीकर जी0एम0सी0 बाल योगी थे। जिन्होंने 22 अक्टूबर 1999 से 3 मार्च 2002 तक इस पद पर कार्य किया । उनके पश्चात मनोहर जोशी 10 मई 2002 से 2 जून 2004 तक लोकसभा स्पीकर के रूप में कार्यरत रहे। उपाध्यक्ष के रूप में पी0एम0 सईद 27 अक्टूबर 1999 से 2 जून 2004 तक कार्य करते रहे। प्रधान सचिव जी0सी0 मल्होत्रा 14 जुलाई 1999 से 28 जुलाई 2005 तक कार्यरत रहे।सदन के नेता अटल बिहारी वाजपेयी (13 अक्टूबर 1999 से 6 फरवरी 2004) थे तो विपक्ष की नेता सोनिया गांधी (13 अक्टूबर 1999 से 6 फरवरी 2004) रहीं। संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन (13 अक्टूबर 1999 से 29 जनवरी 2003) बनाए गए।उनके पश्चात सुषमा स्वराज (29 जनवरी 2003 से 22 मई 2004) ने भी इस पद पर कार्य किया। 1999 के लोकसभा चुनाव पर 947.7 करोड रुपए खर्च हुआ था।
इस लोकसभा चुनाव में पारंपरिक मत पत्रों के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अर्थात ई0वी0एम0 का भी प्रयोग किया गया। डॉ. एम.एस. गिल ( 12 दिसंबर 1996 से 13 जून 2001) इस समय देश के मुख्य चुनाव आयुक्त थे।
पड़ोसी देश पाकिस्तान से संबंध सुधारने का प्रयास
अटल जी ने अतीत की सभी कड़वाहटों को भुलाते हुए उस समय पड़ोसी देश पाकिस्तान के नेतृत्व के साथ मित्रता पूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने फरवरी 1999 में 20 - 25 लोगों के साथ पाकिस्तान की यात्रा की। पड़ोसी देश का विश्वास जीतने के लिए देश के प्रधानमंत्री अटल जी बस में बैठकर पाकिस्तान गए। ऐसी आशा की जा रही थी कि भारत के प्रधानमंत्री की उस उदारता और मित्रतापूर्ण नीति का पड़ोसी देश सही दृष्टिकोण अपनाते हुए प्रति उत्तर देगा। पर पाकिस्तान की प्रकृति में ही शरारत है। नफरत है। यही कारण रहा कि भारत के प्रधानमंत्री जिस समय अपनी उदारता का प्रदर्शन करते हुए पड़ोसी देश पाकिस्तान का दिल जीतने का प्रयास कर रहे थे, तब वह अपनी प्रवृत्ति से मजबूर होकर भारत के विरुद्ध पीठ में छुरा घोंपने की तैयारी कर रहा था। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अपनी ऑफिशियल बायोग्राफी 'गद्दार कौन' में इस तथ्य का खुलासा किया है कि तत्कालीन आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने उनकी पूर्व स्वीकृति के बिना भारत के विरुद्ध कारगिल युद्ध छेड़ दिया था।
परवेज मुशर्रफ ने रची साजिश
भारत के कवि हृदय प्रधानमंत्री अटल जी जब पाकिस्तान पहुंचे तो उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को गले लगा कर भारत की मित्रता और उदारता का नया संदेश दिया। भारत के प्रधानमंत्री ने दोनों देशों की दशकों पुरानी शत्रुता को मिटाकर मित्रता बनाने का नया अध्याय लिखने का प्रयास किया। उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री के साथ बहुत ही उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए वार्तालाप किया। यद्यपि उन्हें यह नहीं पता था कि परवेज मुशर्रफ़ भारत के विरुद्ध किस प्रकार की साजिशें रच रहे थे? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत के प्रधानमंत्री के साथ वार्तालाप में व्यस्त थे। माना जा सकता है कि उन्हें भी यह तथ्य पता नहीं था कि पाकिस्तान की आर्मी के परवेज़ मुशर्रफ़ भारत के साथ कौन सी साजिश रच रहे थे ? पर सच यह है कि जिस समय दोनों देशों के प्रधानमंत्री परिस्थितियों को सामान्य करने पर गहन मंत्रणा कर रहे थे , उसी समय परवेज मुशर्रफ भारतीय क्षेत्र लद्दाख में पाकिस्तान की आर्मी का जमावड़ा कर रहा था।
अपनी उपरोक्त पुस्तक में नवाज़ शरीफ़ ने इस तथ्य का खुलासा किया है कि उन्हें परवेज मुशर्रफ की चालाकियों की जानकारी भारत के प्रधानमंत्री अटल जी के फोन आने पर हुई थी। जब अटल जी ने उनसे कहा था कि तुमने हमारी पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अटल जी द्वारा दी गई जानकारी पर हैरानगी जताते हुए कहा था कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि पाकिस्तान की आर्मी कारगिल में भारत पर हमला करने की तैयारी करती रही है या आज की तिथि में उसने ऐसी कोई हरकत कर दी है ?
अटल जी ने दिया कड़ा संदेश
अटल जी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कड़े और स्पष्ट शब्दों में कहा था कि, 'नवाज साब, फरवरी 1999 में लाहौर में इक्कीस तोपों की सलामी दिए जाने के बाद आपके द्वारा हमारी पीठ में छुरा घोंपा गया है।' तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति के लिए पत्र लिखा। उस पत्र में भारत के प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है तो भारत भी शांत नहीं बैठेगा। उसे अपनी सुरक्षा के लिए पाकिस्तान पर जवाबी हमला करना पड़ेगा।' भारत के प्रधानमंत्री के इस कड़े दृष्टिकोण का पाकिस्तान पर प्रभाव पड़ा। यह युद्ध 74 दिन तक चला था। अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के द्वारा मध्यस्थता करने पर पाकिस्तान पीछे हट गया। कहा जाता है कि उस समय पाकिस्तान ने भारत पर परमाणु हमले की धमकी दी थी। जिस पर अटल जी ने भी यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत पाकिस्तान के परमाणु हमले का अगले ही क्षण प्रति उत्तर देगा और याद रहे कि हमको पाकिस्तान मिटा नहीं पाएगा , पर हम अगले कुछ क्षणों में ही पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त कर देंगे।
बिल क्लिंटन का हस्तक्षेप
तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भागकर अमेरिका गए और अपने आका को अपनी सारी व्यथा कथा सुनाई। 3 घंटे की बातचीत के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन किया। उनसे कहा कि यदि आप पाकिस्तान के साथ कश्मीर के मुद्दे को हल करने पर सहमति व्यक्त करते हैं तो पाकिस्तान भी कारगिल युद्ध विराम के लिए तैयार है। इस पर भारत के प्रधानमंत्री अटल जी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से स्पष्ट कर दिया था कि जब मैं पाकिस्तान गया था तो कश्मीर समस्या के समाधान के लिए ही गया था। पर यह कारगिल युद्ध से पहले की बात है, अर्थात अब कारगिल युद्ध के बाद की बदली हुई परिस्थितियों में यह संभव नहीं है कि पाकिस्तान के छोटे से हमला से भारत झुक जाए। इस प्रकार अटल जी ने पड़ोसी शत्रु देश पाकिस्तान को बिना शर्त कारगिल से पीछे हटने के लिए विवश कर दिया था।
कारगिल युद्ध में हमारे देश के अनेक सैनिकों का बलिदान हुआ। पर इससे अटल जी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। उनके भीतर एक देशभक्त नेता को देख कर भारत के लोगों को भी असीम प्रसन्नता हुई। जब वह बस में सवार होकर पाकिस्तान गए थे तो उस समय उनके कई आलोचकों ने उनके विरुद्ध समाचार पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखे थे। जिनमें उनकी इस उदारता का समर्थन न करके इसका विरोध किया गया था। कई लेखकों ने उस समय यह आशंका व्यक्त की थी कि अटल जी पाकिस्तान के साथ अधिक उदारता का प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसका मूल्य देश को चुकाना पड़ेगा। कारगिल की घटना के बाद कुछ सीमा तक यह बात सही सिद्ध हो गई थी। पर अटल जी ने अपने धैर्य और संयम के साथ परिस्थितियों को और अधिक बिगड़ने से रोककर मामले को सुलझा लिया।
इसके उपरांत भी यह बात बहुत ही आश्चर्यजनक है कि जो अटल जी जीवन भर राष्ट्रीय मुद्दों पर सजग न रहने के लिए नेहरू जी की आलोचना करते रहे और इस बात के लिए उन्हें दोषी ठहराते रहे कि वह पाकिस्तान और चीन के प्रति आवश्यकता से अधिक मित्रता की बातें कर रहे थे, यदि नेहरू सजग रहते तो चीन से हमारे देश को पराजित नहीं होना पड़ता, वही अटल जी स्वयं पाकिस्तान प्रेम में इतने बह गए कि पाकिस्तान के इरादों को भांप नहीं सके ? हर व्यक्ति को उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते समय ही बहुत सी बातों का पता चलता है। गलती किसी से भी हो सकती है, कहीं भी हो सकती है और कभी भी हो सकती है।
13 वीं लोकसभा और संसद पर आतंकी हमला
अटल जी के शासनकाल में ही भारत की संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था। यह घटना 13 दिसंबर 2001 की है। इस आतंकवादी हमले में 18 लोग घायल हुए थे। जबकि नौ लोग मारे गए थे। उस समय हमारी संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। महिला आरक्षण विधेयक पर उस दिन गरमागरम बहस हुई थी। संसद को विपक्ष चलने नहीं दे रहा था। जिसके कारण सुबह लगभग 11:00 बजे लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी समेत अनेक बड़े नेता संसद से प्रस्थान कर चुके थे। इसके उपरांत भी भारत के तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन, कई मंत्री और सांसदों सहित बड़ी संख्या में विशिष्ट जन वहां पर उपस्थित थे। तभी लगभग 11:30 बजे सफेद रंग की एंबेसडर कार संसद भवन में प्रवेश करने में सफल हो गई।
सुरक्षाकर्मियों को इस गाड़ी का अचानक प्रवेश करना कुछ असहज सा लगा, इसलिए वह इस गाड़ी के पीछे दौड़े। आतंकियों की कार उपराष्ट्रपति की कार से टकराई और उन्होंने उसके पश्चात सुरक्षाकर्मियों पर गोली बरसानी आरंभ कर दीं।
हमारे सुरक्षाकर्मी तो उनके सामने लगभग निहत्थे ही थे , पर आतंकवादी आधुनिकतम हथियारों से लैस थे। उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के सुरक्षा गार्ड और संसद के सुरक्षाकर्मियों ने आतंकियों पर अपनी ओर से भी गोलियां बरसानी आरंभ कर दीं। संसद के गेट नंबर 01 से आते हुए एक आतंकवादी को सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया। सभी मंत्रियों और विशिष्ट जनों को भीतर ही सुरक्षित रहने के लिए कहा गया। गेट नंबर 04 से सदन के भीतर घुस रहे आतंकवादी को भी मार दिया गया। अंतिम आतंकवादी को गेट नंबर 5 की ओर भागते हुए मार दिया गया।
उस समय हमारे कई वीर सुरक्षाकर्मियों ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना देश की चिंता करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
गुजरात के गोधरा दंगे
अटल जी के इस तीसरे कार्यकाल की तीसरी घटना गुजरात के दंगों की थी। 2002 के गुजरात दंगों में कई दिन तक गुजरात झुलसता रहा था। अहमदाबाद में उस समय 3 महीने तक हिंसा का प्रकोप बना रहा था। 27 फरवरी 2002 की घटना है, जब गोधरा में एक ट्रेन को मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा जला दिया गया था। जिसमें 58 हिंदू कारसेवकों की मृत्यु हो गई थी। यह कारसेवक उस समय अयोध्या से लौट रहे थे। इसके पश्चात प्रतिक्रियास्वरूप हिंदू समाज के लोगों ने भी अपना रौद्र रूप दिखाया। कहा जाता है कि इसमें 700 से अधिक मुसलमानों की और ढाई सौ से अधिक हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी।
तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे । उनकी भूमिका को लेकर कई लोगों ने उनकी कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाए थे और कई प्रकार के गंभीर आरोपों से उन्हें गुजरना पड़ा था। उन पर लगे आरोपों के दृष्टिगत प्रधानमंत्री अटल जी ने उस समय उन्हें 'राजधर्म का निर्वाह' करने की सलाह देकर मामले पर बहुत शीघ्र मरहम लगाने का कार्य किया था।
अटल जी ने अपने 5 वर्ष के तीसरे कार्यकाल में स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का शुभारंभ किया। यह उनके शासन की अच्छी उपलब्धि मानी जाती है। पोटा अर्थात आतंकवाद निरोधक अधिनियम 2002 बनवाकर भी उन्होंने एक अच्छा कार्य संपन्न किया था। इस अधिनियम का उद्देश्य आतंकवाद विरोधी अभियानों को मजबूती प्रदान करना था। जिस प्रकार आतंकवादी देश की संसद तक में प्रवेश करने में सफल हुए थे, वह सचमुच एक चिंता का विषय था। इस पर अटल जी की सरकार ने अन्य दलों को साथ लेकर इस कानून को बनवाया। बाद में 2004 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो उसने इस कानून को निरस्त कर दिया।
(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
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