लोकसभा चुनाव 2024 - सनातन उत्थान या पराभव

लोकसभा चुनाव 2024 - सनातन उत्थान या पराभव

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|

हाल में ही भारत में लोकसभा का चुनाव संपन्न हुआ। चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम आए, कल तक जिस प्रधानमंत्री के पास कल तक अपने दल के दम पर बहुमत था आज वह बहुमत के लिए अन्य दलों पर आश्रित है। लगातार दो बार के एक दल के पूर्ण बहुमत की सरकार के बाद पुनः गठबंधन का दौर लौट आया है और शायद उसके साथ ही घपले और घोटालों की आशंका भी। मोदीजी अपने दल के मंत्रियों को तो रोक लेंगे पर गठबंधन के सहयोगी दलों के मंत्रियों पर कितनी लगाम कस पाएंगे यह देखने योग्य होगा।
इस लंगड़े विश्वास मत के मूल में हिंदू मतों का विभाजन है।
जहां 2014 और 2019 को सनातन के उभार के रूप में देखा गया था वहीं 2024 ने सनातन को पुनः वहीं खड़ा कर दिया जहां वह 2004 में था। आज हिंदू जनमानस को सोचने की जरूरत है कि वे आखिर चाहता क्या है। क्या इसका आत्मसम्मान इतना मर गया है कि चंद रुपयों के लालच में वो अपने बच्चों का भविष्य दांव पर लगा देगा। राम मंदिर, मुस्लिम आरक्षण कोई भी मुद्दा काम ना आया। इस चुनाव में विकास, भारत का अंतर्राष्ट्रीय सम्मान, राष्ट्रवाद सब हवा हो गया नतीजा हुआ कि बीजेपी 240 सीटों पर सिमट कर रह गई। इंडी के उभार में मूल कारण उन्हें करीब करीब शत प्रतिशत मुस्लिम वोट मिलना था। यहांं तक हुआ कि जिस बूथ पर बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के 22 सदस्य थे वहां उन्हें सिर्फ 8 मत मिले। यानी या तो अन्य 14 ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया या उन्होंने भी अपने दीन को चुना भारत को नहीं। लक्ष्यद्वीप, जिसे मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया, जैसी सीट पर बीजेपी को मात्र 201 वोट मिले। इंदौर में तो हद ही हो गई मुस्लिमों के 211000 से ज्यादा वोट नोटा को चले गए पर बीजेपी को नहीं मिले। यानी वोट जिहाद की जो अपील सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम, जो समाजवादी पार्टी की नेता भी है, ने की थी वो जमीन पर उतरती दिखाई पड़ी और सच साबित हुई। मुसलमानों ने नहीं देखा कि वे पसमंदा हैं, अंसारी हैं या शेख, सैय्यद सभी ने बीजेपी के खिलाफ मत दिया रही सही कसर राहुल गांधी के फटाफट खटाखट के ₹8500 ने कर दी। हिंदू जनमानस इस लालच में फंस गया। उसने सब कुछ दरकिनार कर बीजेपी को छोड़ दिया हालांकि यह पूरा सच नहीं है। बीजेपी का वोट शेयर अभी भी उसी स्तर पर है इसमें 1% से भी कम की गिरावट आई है। उसका वोट प्रतिशत इस चुनाव में 36.6% रहा जो पिछले राष्ट्रीय वोट प्रतिशत 37.30% से थोड़ा सा कम है। पर सीटों के लिहाज से देखें तो 63 सीटों का नुकसान कर गया। जहां शहरी लोगों ने अभी भी बीजेपी का साथ दिया वहीं ग्रामीण भारत ने बीजेपी को त्याग दिया। कई कारण गिनाए गए जिसमें प्रमुख रहे आरक्षण की स्थिति पर संदेह, संविधान की स्थिति पर शंका और सबसे ऊपर मुफ्त मिलने वाले 1 लाख का लालच। कांग्रेस का छपा हुआ गारंटी कार्ड चल निकला अब ये अलग बात है कि इसी कारण से अब कांग्रेस पर निर्वाचन आयोग की तलवार मंडरा रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को मिल रहे मुस्लिम वोट में 3% (9%से 6%) की गिरावट देखी गई जबकि इंडी ब्लॉक को मिलने वाले समर्थन में 24% का उभार देखा गया (52% से 76%)। पर मुख्य प्रश्न फिर भी हिंदू समाज के वोटों के विभाजन का है। इस बार करीब करीब 35% हिंदू वोटर वोट डालने गया ही नहीं शायद वह निश्चिंत था कि 400 तो आ ही रहा है। याबफीर उसके दिमाग में यह बात भर दी गई कि उसको मिल रही सुविधाओ यथा आरक्षण आदि को खत्म कर दिया जायेगा। हिंदू महिलाओं की भी एक बड़ी आबादी इस बार मुफ्त के 1 लाख के चक्कर में भी पड़ी और अपने वोट को सनातन को सुदृढ़ करने की बजाय उसे कमजोर करने में लगा दिया। यह अत्यंत चिंता का विषय है। इस नारी शक्ति को केंद्रित कर अगर राजनीतिक दल आगे बढ़ेंगे तो सनातन का पराभव पुनः उत्थान में बदलने में देर नहीं लगेगी।- 
मनोज कुमार मिश्र
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