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मौसम नहीं है मेहरबान: सिर्फ छह महीने में हज़ारों की गई जान, 41 अरब डॉलर का नुकसान

मौसम नहीं है मेहरबान: सिर्फ छह महीने में हज़ारों की गई जान, 41 अरब डॉलर का नुकसान

अंतरराष्ट्रीय विकास संस्था क्रिश्चियन एड की एक ताजा रिपोर्ट ने जलवायु संकट की विभीषिका को उजागर किया है. रिपोर्ट के अनुसार पिछले छह महीनों में ही चरम मौसमी घटनाओं ने दुनियाभर में 41 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान पहुंचाया है, साथ ही 2,500 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. ये आंकड़े सिर्फ शुरुआत हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और भी भयावह रूप ले सकती हैं.

क्रिश्चियन एड की वैश्विक एडवोकेसी प्रमुख मारियाना पाओली ने रिपोर्ट में चेतावनी दी है, "हम जलवायु संकट के जख्मों को भर नहीं सकते. लेकिन हम अभी भी आग में ईंधन डाल रहे हैं." उनका कहना है कि जलवायु संकट के लिए काफी हद तक जिम्मेदार अमीर देशों को जलवायु कार्रवाई के लिए धन में भारी वृद्धि करनी चाहिए.

जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए गंभीर कदम उठाने की मांग तेज हो रही है, खासकर गरीब देशों के लिए जो इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. जर्मनी के बॉन में चल रही जलवायु वार्ता में गरीब देशों को आर्थिक मदद देने के लिए "लॉस एंड डैमेज फंड" की स्थापना पर चर्चा हो रही है. क्रिश्चियन एड इस फंड में अमीर देशों के योगदान को बढ़ाने की मांग कर रही है.

असली तबाही का आंकलन मुश्किल

रिपोर्ट में बताया गया है कि 41 अरब डॉलर का आंकड़ा सिर्फ बीमाकृत क्षति को दर्शाता है. गरीब देशों में जहां बीमा का प्रचलन कम है, वहां हुए नुकसान का सही आकलन करना मुश्किल है. रिपोर्ट में बाढ़ और हीटवेव जैसी चार बड़ी मौसमी घटनाओं का जिक्र किया गया है, जिनका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से बताया गया है.
ब्राजील में बाढ़ का तांडव

रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील में आई बाढ़ ने कम से कम 169 लोगों की जान ले ली और कम से कम $7 बिलियन का आर्थिक नुकसान पहुंचाया. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ब्राजील में बाढ़ की संभावना दोगुनी हो गई है.

दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया में बाढ़ का कहर


दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया में भीषण बाढ़ आई, जिसने कम से कम 214 लोगों की जान ले ली और अकेले संयुक्त अरब अमीरात में ही $850 मिलियन का बीमाकृत नुकसान हुआ. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में भी जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की संभावना बढ़ गई है.


हीटवेव का प्रचंड प्रकोप


पश्चिम, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भीषण हीटवेव का प्रकोप देखने को मिला. अकेले म्यांमार में ही 1,500 से अधिक लोग हीटवेव के कारण मारे गए. विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में ऐसी हीटवेव जलवायु परिवर्तन के बिना असंभव थी, वहीं दक्षिण और पश्चिम एशिया में यह काफी अधिक गंभीर रूप ले सकती थी. हीटवेव से न सिर्फ जानमाल का भारी नुकसान हुआ बल्कि आर्थिक विकास भी प्रभावित हुआ.


पूर्वी अफ्रीका में चक्रवातों का कहर


पूर्वी अफ्रीका भी चक्रवातों की चपेट में आया, जहां बाढ़ में 559 लोगों की जान चली गई. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पूर्वी अफ्रीका में चक्रवातों की संभावना और तीव्रता दोगुनी हो गई है.


डेविड फरांडा, इंस्टीट्यूट पियरे-साइमन लाप्लास (पेरिस) के शोधकर्ता ने कहा: "2024 में, मानव-जनित कार्बन उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग 1.5°C तापमान सीमा पार कर गई है. यह बढ़ता वैश्विक तापमान भीषण हीट वेव, सूखे, चक्रवातों और बाढ़ का कारण बन रहा है, जिन्हें सीधे तौर पर मानव ग्रीनहाउस गैस एमिशन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और ये भारी मानवीय और आर्थिक क्षति पहुंचा रहे हैं."


जलवायु न्याय की मांग


न केवल आर्थिक क्षति, बल्कि जलवायु संकट का सामाजिक और मानवीय पहलू भी भयावह है. बाढ़ और हीटवेव ने बच्चों की शिक्षा को बाधित किया है, जिससे गरीबी के चक्र से बाहर निकलना उनके लिए और भी मुश्किल हो गया है. इन आपदाओं ने फसलों और पशुओं को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिससे कुछ क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा और अन्य क्षेत्रों में महंगाई बढ़ गई है. चरम मौसम ने शरणार्थियों और संघर्ष से जूझ रहे लोगों के लिए मौजूदा संकटों को और गंभीर बना दिया है. भारत में भीषण गर्मी के कारण मतदान के दौरान कई लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा.


क्रिश्चियन एड की बांग्लादेश में जलवायु न्याय सलाहकार नुसरत चौधरी ने कहा, "पिछले हफ्ते मेरा देश बांग्लादेश चक्रवात रेमाल की चपेट में आया, जिसने लोगों की जान ली और उनकी आजीविका तबाह कर दी. 150,000 से अधिक घर क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए. यह जलवायु संकट है जिसका हम सामना कर रहे हैं, और मुझे चिंता है कि यह तब तक और भी खराब होता जाएगा जब तक दुनिया कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करती. बांग्लादेश के लोग इस आपदा के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, फिर भी उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लॉस एंड डैमेज फंड को पर्याप्त धन मिले ताकि लोग ऐसी भयानक आपदाओं से उबरने में सहायता प्राप्त कर सकें."


आगे का रास्ता: फॉसिल फ्यूल को अलविदा


जलवायु संकट से निपटने का रास्ता स्पष्ट है: क्रिश्चियन एड का कहना है कि सरकारों और विकास बैंकों को फॉसिल फ्यूल, कोयला और गैस में नए निवेश को रोकना चाहिए, जो इन आपदाओं को बढ़ा रहे हैं. साथ ही क्लीन ग्रीन डेवलपमेंट को समर्थन देने के लिए विकेन्द्रीकृत रिन्यूएबल एनर्जी को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देना चाहिए.


फियोना नूनन, बर्मिंघम विश्वविद्यालय में पर्यावरण और विकास की प्रोफेसर ने कहा, "इस साल दुनिया भर के समुदाय चक्रवातों की चपेट में आए, बाढ़ से घिरे रहे और भयानक हीटवेव का सामना करना पड़ा. इन आपदाओं से भारी आर्थिक और सामाजिक नुकसान हुआ है. अगर दुनिया ग्रीनहाउस गैस एमिशन को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं करती है, तो ये घटनाएं भविष्य में और भी खतरनाक हो जाएंगी. हमें कोयला और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जल्द से जल्द छोड़ना होगा और रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों की ओर तेजी से रुख करना होगा. साथ ही, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल उपायों के लिए गरीब देशों को धन मुहैया कराना भी आवश्यक है. तभी हम इस वैश्विक संकट से निपटने में सफल हो सकेंगे."

एकजुट होकर जलवायु संकट से लड़ाई


जलवायु संकट एक वैश्विक समस्या है और इसका समाधान भी वैश्विक स्तर पर ही संभव है. अमीर देशों को गरीब देशों की मदद के लिए आगे आना होगा. साथ ही, हर देश को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा.


जलवायु कार्रवाई में व्यक्तिगत स्तर पर भी योगदान दिया जा सकता है. कम ऊर्जा खर्च करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल, सार्वजनिक परिवहन का अधिक से अधिक उपयोग, कम मांसाहार और कम खाद्य अपव्यय जैसी छोटी-छोटी आदतें जलवायु परिवर्तन को कम करने में मददगार साबित हो सकती हैं.अंतरराष्ट्रीय विकास संस्था क्रिश्चियन एड की रिपोर्ट एक चेतावनी है. यह रिपोर्ट हमें याद दिलाती है कि जलवायु संकट पहले से ही हमारे सामने है और उसका भयानक प्रभाव दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है. जलवायु संकट से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है. नहीं तो आने वाले समय में यह संकट और विकराल रूप ले सकता है.
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