बाबूजी
पिता का साथ छूटे तो ये दुनिया रूठ जाती है।सगे रिश्तों के माला की कड़ी भी टूट जाती है।
मरे जब पांडु तो अपने हुए सब गैर से बदतर-
पिता के दम पे है किस्मत, न हों तो फूट जाती है।।
पिता के पाँव को धोता, विहँसता सिंधु दिखता है।
तिलक सा शीश के ऊपर, हिमालय बिंदु दिखता है।
प्रभंजन है भुजाओं में धरा आकाश तक काबिज़।
नयन में एक है सूरज व दूजा इंदु दिखता है।।
कौन होगा आपसा वसुधैव को कुल मानता!
कौन होगा आपसा जग को सहोदर जानता!
आप अलबेले,अनोखे,अप्रतिम,अविकार थे-
आपको अवधेश ईश्वर मानता - पहचानता।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
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