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आदित्यार्क गाथा-

आदित्यार्क गाथा-

सुशील कुमार मिश्र
सूरज का पहला मंदिर ,शायद यही बना था|
सूरज की पहली मूर्ति ,थापित यहीं हुई थी|
लेकिन वो युग था द्वापर, कलि का वो युग नहीं था|
थे सांब जिसने मंदिर ,निर्माण कराया था|
मुल्तान ये जगह मूल स्थान कहाता था|
कश्यपपुरा भी पहले ,मुल्तान कहाता था|
हम जानते सभी है, कश्यप पिता सूरज के|
माता अदिति उनकी , आदित्य जिनसे जन्में|
चेनाब चंद्रभागा ,इस नाम से बहती थीं|
कहते हैं इस नदी में ,वो मूर्ति भी मिली थी|
चंद्र व भागा नदियां, चेनाब में मिलती हैं|
लेकिन ये दोनों मिलकर ,चेनाब कहातीं हैं|
चंद्र चंद्रमा की पुत्री,पुत्र भागा सूर्य के थे
दोनों में प्रेम था पर ,अड़चन बहुत पड़े थे
दोनों के प्रेम की भी ,कही जाती है कहानी
दोनों ने नदी बनकर , मिलन की मन में ठानी
दोनों मिले और मिलकर ,चन्द्रभागा नाम पाए
ये अमर प्रेम गाथा ,दुनियां में लोग गाए|
पावन है इसकी धारा ,यह रोग भी मिटाए
कुष्ठ रोग से तो ये मुक्ति ही दिलाए|
इसी धारा में कभी तो थे सांब भी नहाए
भीषण वो कुष्ठ से भी, थे मुक्ति भी तो पाए
वो मित्रवन यहीं था ,जहां ध्यान थे लगाए
भगवान सूर्य का भी, दर्शन उन्होंने पाए
चंद्रभागा का तो वर्णन, वेदों में पुराणों में,
अस्थियां विसर्जन ,करते हैं इस संगम में|
है आस्किनी यही तो ऋगवेद में जो वर्णित
स्कंद शिवपुराणे चंद्रभागा नाम वर्णित
वशिष्ठ द्रौपदी का ,अस्थि यहीं विसर्जित
इस क्षेत्र के सभी जन ,करते यहीं विसर्जित|
जहां सूर्य ताल से है ,भागा नदी का उद्गम
और चंद्र ताल से ही, चंद्रा नदी का उद्गम
स्पीति घाटी से हो चंद्रा है बहती आती
लाहौल घाटियों से हैं, ये भागा बहते आते
है टांडी गांव स्थित, जहां दोनों का है संगम
दो प्रेम करने वाले, ये नद नदी का संगम
संध्या ने की तपस्या संगम भी वो यही था
वशिष्ठ विवाहास्थल कहते है वो यही था|
चेनाब के ही तट पर, मुल्तान ये शहर है|
हम तो कहेंगे ये तो ,चंद्रभागा के तट पर है|
ह्वेन सांग ने लिखा है ,मंदिर को आंख देखी
सोने की सूर्य प्रतिमा ,पत्थर वो लाल रूबी|
सोना चांदी रत्न से ही ,जड़े शिखर खंभ थे भी|
सुंदर ये कितना होगा ,सब सोचो जरा तब ही|
मसूदी, इस्तखरी, इब्न हौकल अलबरुनी|
सबने लिखा है मंदिर ,था यह तो सूर्य का ही|
भूगोलवेत्ता था एक , वो अल मुकद्दासी|
उसने लिखा ये मंदिर ,तब भी था खास ही|
वह आठवीं शदी का , मुहम्मद बिन कासिम
मुल्तान पर ही उसने, किया था जीत हासिल|
उसने भी तो ये मंदिर, वैसे बनाए रक्खा
यहां तीर्थ यात्रियों का, आता था बड़ा जत्था
था स्रोत आय का ये, इसको रखा बनाए
मुल्तान पर भी हमला, न हिंदू ही कर पाए
डर था कहीं ये मंदिर, मुस्लिम नहीं ढहाए
किंतु वो दुष्ट गजनी, सब नष्ट कर ही डाला
उसने ये सूर्य मंदिर ,को ध्वस्त कर ही डाला
फिर से न कोई ऐसा , राजा न कोई शासन
अब तक नही हुआ जो ,मंदिर लगे बनावन
अभी भी तो इस जगह को ,कहते है सूर्यपूरा
कहते बुजूर्ग है कि, था सूर्य यहां उतरा
खंडहर बना हुआ है ,यह क्षेत्र ही तो पूरा
पुरातत्वविद न सोचे, करें खोज इसका पूरा
आए तो होंगे मग भी, पहले पहल यहीं पर
करवाए किए पूजा, होंगे इसी जगह पर
पर अब नहीं है मंदिर ,न ही कोई मग यहां पर
भारत में सब बसे हैं ,देखो जहां तहां पर
सब नष्ट हो चुका है, कुछ भी न शेष है अब|
अवशेष भी नहीं है ,जिसे देखें या दिखाएं|
कभी देश के था अंदर ,अब देश से भी बाहर|
यहां जाना भी है मुश्किल, जो देखें वहां जाकर|
इतिहास ही है केवल ,पढ़ें जिसको या बताएं|
नहीं तो नहीं है हिम्मत, कि हम वहां पे जाएं
इतिहास पुराणों को ही ,बस मानो एक साक्षी
नहीं तो नहीं मिटेगी, ऐ सुशील तेरी उदासी|
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