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अब गाँव पहिले वाला गाँव ना रह ग‌इल।।

अब गाँव पहिले वाला गाँव ना रह ग‌इल।। 

अब गाँव पहिले वाला गाँव ना रह ग‌इल।। 
अब गाँव के सब खांड़ी, खंधक, प‌ईन, 
ब‌उली,कुआं ईनार तक भरा ग‌इल।। 
गाँव गाँव जे खेले वाला परती, मैदान रहे, 
अब उ सब जोते वाला खेत भ‌इल।। 
अब कहीं मड़ई, पलानी, बेर्ही, भुस‌उल, 
खपरैल मकान आउर टाट ना देखात बा। 
बथानी बथानी चिपरी गोइठा पाथल आउर, 
सांझ के घूर लागत, कतहुँ ना देखात बा।। 
बैल भंइस गाय बकरी गायब भ‌इल, 
नाद खुंटा उखड़ ग‌इल । 
मोट, रहट  , ढेंकी, बरहा, 
हथ्था, कुंड़ अब ना केहू के सोहात बा।
हर, फार, हेंगी, पाट्टा, 
इ सब अब कतहुँ ना देखात बा। 
कच्ची सड़क, बैलगाड़ी, 
सब लोग भुलल जात बा।। 
विकास के बेयार बहल, 
गाँव के इ सब धरोहर दहल। 
कतहुँ कतहुँ शहर का जादूघर में, 
कुछ कुछ निशानी देखात बा।। 
अब अपना नाती पोता के सामने, 
इ सब चीज के नाम ध‌इला पर,
ओकनी का नजर में हमनीं के गिनिती, 
अब पागल सन में रह ग‌इल।
भैया जी अब सही मायने में, 
 गाँव पहिले वाला गाँव ना रह ग‌इल।। 
                        जय प्रकाश कुवंर
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