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भूख थी मुझको मगर, व्याकुल हो रोया नही,

भूख थी मुझको मगर, व्याकुल हो रोया नही,

भीड में तन्हां हुआ, घबराकर खोया नही।
नींद थी मुझ पर हावी, कई दिनों से मगर,
करवटें बदली बहुत, फिर भी मैं सोया नही।
थी बहुत उपजाऊ मिट्टी, उस खेत की 'कीर्ति',
आम ही बोया, बीज गूलर का मगर बोया नही।
लिया इम्तिहान मेरे धैर्य का, सबने बहुत ही,
हिल रहा था सयंम मेरा भी, मगर खोया नही।
गोद में मेरी चढा प्यार से, वो गली का बच्चा,
वस्त्र गन्दे हो गये, मैने उन्हें धोया नही।
था बहुत अपनापन, उस बच्चे के व्यवहार में,
वो अजनबी मेरे लिये था, मगर रोया नही।
था बहुत कीमती, किसी माला का वो मोती,
टूट कर बिखरा मगर, किसी ने संजोया नही।

अ कीर्तिवर्धन
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