"जयचंद और प्रजातंत्र: एक विमर्श"

"जयचंद और प्रजातंत्र: एक विमर्श"

प्रजातंत्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें विचारों की विविधता का सम्मान होता है। एक सच्चे प्रजातंत्र में हर व्यक्ति को अपनी राय रखने और अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार होता है। इस संदर्भ में, किसी व्यक्ति या समूह को उसकी विचारधारा के कारण 'जयचंद' कहना न केवल अनुचित है, बल्कि प्रजातांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है।


जयचंद का नाम इतिहास में एक विश्वासघाती के रूप में लिया जाता है, जिसने अपने स्वार्थ के लिए देश के हितों की अनदेखी की। इस ऐतिहासिक संदर्भ को आधुनिक राजनीतिक विचारधाराओं पर लागू करना तर्कसंगत नहीं है। प्रजातंत्र में, नागरिकों का मत बदलना उनके अधिकार का हिस्सा है। 2019 में अगर किसी ने एक दल को समर्थन दिया था और अब किसी कारणवश उसने अपना मत बदल दिया है, तो यह उसकी स्वतंत्रता और विवेक का प्रतीक है। उसे जयचंद कहना उसकी देशभक्ति और समझदारी पर सवाल उठाना है।


हमारे समाज में, स्वार्थ सिद्ध करने वाले और परोक्ष या अपरोक्ष अन्याय करने वाले लोग भी होते हैं। वे वास्तव में समाज के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं, लेकिन इनका मुकाबला करने के लिए हमें समग्रता और निष्पक्षता से काम लेना चाहिए। ऐसे लोगों को पहचानने और उनके खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक सशक्त और न्यायप्रिय समाज की आवश्यकता है। अगर हम इन वास्तविक समस्याओं के बजाय विचारधाराओं के आधार पर लोगों को दोषी ठहराएंगे, तो हम अपने समाज को बांटने का काम करेंगे।


यह दोगलापन तब अधिक स्पष्ट हो जाता है जब हम देखते हैं कि एक तरफ तो हम विचारों की विविधता की बात करते हैं, लेकिन दूसरी ओर हम विचारधारात्मक असहमति को देशद्रोह से जोड़ते हैं। यह प्रवृत्ति प्रजातांत्रिक समाज के लिए घातक है। हमें यह समझना होगा कि सच्चा प्रजातंत्र वह है जहाँ विभिन्न विचारधाराएँ फलती-फूलती हैं और एक-दूसरे के साथ संवाद में रहती हैं।

अतः, किसी भी व्यक्ति या समूह को उसकी विचारधारा के कारण 'जयचंद' कहना न केवल अनुचित है बल्कि प्रजातांत्रिक मूल्यों के विपरीत भी है। हमें अपनी आलोचना को स्वार्थ सिद्ध करने वालों और वास्तविक अन्याय करने वालों पर केंद्रित करना चाहिए, न कि विचारधारात्मक असहमति पर। केवल तभी हम एक सशक्त, न्यायप्रिय और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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