मील का पत्थर -----
मैंमील का पत्थर नहीं हूँ
सिमट जाऊँगा
जो राहों में,
मैं एक मुसाफिर हूँ
जो आगे बढ़ता जाऊँगा
छोड़ कर अपने निशां
उन पत्थरों की छावँ में।
मै तलाशता हूँ मंजिलें
जहाँ प्यार मिलता है
आप जैसा कोई
शिल्पकार मिलता है
तराश कर मुझको जो
नायाब बुत बना दे
अपने हुनर से
बुत को भी बस
इंसान बना दे।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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