मानव जीवन का सत्य
तू माटी का एक पुतला हैतुझे माटी में ही मिलना है।
बस कट पुतली बनकर ही
मानव जीवन को जीना है।
और मानव के पुतले को
मानव से ही खेलना है।
और फिर बर्षो के उपरांत
तुझे माटी में मिलना है।।
लिया है जन्म जिस घर में तूने।
उसका महौल बहुत अच्छा है।
न घर में कोई कलह आशांति है।
पर दिलों में प्रेम आपार है।।
आज मन बहुत विचलित है।
न कोई गम है और न दुख है।
न ही सोच में कोई अंतर है।
फिर भी न जाने क्यों उदास है।।
देख उदासी को मेरी सब ने
तब आकर कारण पूछा मुझसे।
नहीं है मन में जब कोई बात
तो क्या उत्तर दू मैं उनको।
पर देखो इस पुतले को
जिसने कितना कुछ पाया है।
तभी तो जग में भी इस ने
बहुत ही नाम कमाया है।।
परंतु आज इस को भी
हुआ एहसास सत्य का।
नहीं है अब भरोसा इसको
जिसे एक दिन जाना है।
और माटी के खिलौने को
माटी में ही मिल जाना है।
फिर पुन: माटी को ही
नया रूप लेकर आना है।।
तभी तो लोग कहते है
बैठकर अपनो के साथ।
जो आया है वो जायेगा
फिर क्यों इससे घबराना है।
पर कहने और सुनने में तो
बहुत अच्छा लगता है।
पर सच में मरने से तो
सभी को डर लगता है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना"
मुंबई
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