कुछ तो ऐसा कीजिए

कुछ तो ऐसा कीजिए|

इक़बाल बुलंद हो सरकार का, कुछ तो ऐसा कीजिए,
अराजकता के समर्थकों को, कुछ सख़्त सजा दीजिए।
हर बार कदम आगे बढ़ाकर, पीछे हटाना अच्छा नहीं,
गुण्डों के सरदारों को अब, क़ानून का मज़ा दीजिए।


क्या हो रहा बंगाल मे, क्यों निर्दोष मारे जा रहे,
निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर, पहरे लगाये जा रहे।
धर्मांतरण का खेल देश में, खुले आम जारी है,
तुष्टिकरण के पैरोकार, जिहाद बढाये जा रहे।


अनेक दल दलदल में गिरने को आतुर यहाँ,
मानवता को रौंदने खड़े दिखते आतुर यहाँ।
सनातन के विरूद्ध सब एक साथ लामबन्द,
सत्ता हित दुश्मनों से मिलने को आतुर यहाँ।


कब तलक मौन रहकर, मुखरता से लड़ सकेंगे,
जनसंख्या वृद्धि से सत्ता, लक्ष्य से लड़ सकेंगे?
भेड़िये होकर इकट्ठा झुंड में, शेर को ललकारते,
राष्ट्र धर्मी साथ न हों, तो इनसे कैसे लड़ सकेंगे?


तोड़ दें मनोबल हमारा, इतिहास वह पढ़ाया गया,
जीत को छिपा दिया, हार का क़िस्सा बताया गया।
“अहिंसा परमो धर्मः”, जन्म घुट्टी में पिला दिया,
“धर्म हिंसा तथैव च:“, संस्कारों से मिटाया गया।


धर्म परिवर्तन कराकर, वह मदर टेरेसा बन गयी,
हिन्दुओं का कत्ल करने वालों की मज़ारें बन गयी।
जगाने चले जो हिन्दुओं को, गाय माता की सुरक्षा,
नयी परिभाषा आतंक की, भगवा आतंक बन गयी।


धर्म में हमको बताया, शस्त्र शास्त्र संग हों,
अधर्मियों के विनाश में, चेतना न भंग हो।
हो धर्म की स्थापना, रहे राष्ट्र हित सर्वोपरि,
हौसला बुलन्द अपना, मन न कभी अपंग हो।

डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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