पिता का पता
बता दे कोई पिता का पता ,कहाॅं है पिता का ठिकाना ।
जिसने मुझे है पोसा पाला ,
पढ़ा लिखाकर दिया खाना ।।
चल जाए ये पिता का पता ,
शीघ्र हो जाऊॅं वहाॅं रवाना ।
ढूॅंढकर लाऊॅं पुनः मैं घर पे
पुनः कर्म मुझे है ये निभाना ।।
पिता का पता क्या पूछे हो ,
इसके हेतु बनना होगा पति ।
पत्नी जनती जब शिशु को ,
पिता का पता घुसता मति ।।
माता ममता की डाल होती ,
पति पिता तब बनता पत्ता ।
इसी बीच होत शिशु सुरक्षा ,
आगे शिशु की है होत सत्ता ।।
पति पात पिता का है पता ,
मन मस्तिष्क में ले तू ढूॅंढ़ ।
बेटा से पति पति से पिता ,
पिता से तू कभी भी न कूढ़ ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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