इहाँ अब केहू के केहू प्रेम ना करेला।

इहाँ अब केहू के केहू प्रेम ना करेला।

कुछ लोग बुड़बक ह, जे सबका खातिर मरेला।।
पहिले लोग इ ना पतिआला भाई।
बाकिर मौका अइला पर सब भेद खुल जाई।।
उ त्रेतायुग रहे जब राम जी संगे,बिना कहले,
बन में पत्नी सीता जी ग‌इली आउर लक्ष्मण भाई।
इ कलियुग ह , एह में कतनों बोल‌इब,
कतनों चिल‌इब , बाकिर केहू तोहरा साथ ना आई।।
तूं नेक ह‌उअ कि बाउर ह‌उअ,
एह से केहू के कवनो लेना देना नइखे।
हम गुलाम रहब कि आजाद रहब,
एहू बात से केहू के कवनो फरक पड़े वाला नइखे।।
हमार पेट भरत रहे, बस एतने से काम बा,
बाकी कवनो लेना देना नइखे, देश आजाद बा कि गुलाम बा।
मुफत में कवनो चीज मिलला पर,
केहू के ओकर कीमत ना बुझाला।
ओही चीज के पावे खातिर कतना लोग,
आपन खून बहावल, कम लोग के इ बात बुझाला।।
अच्छा होई जे लोग बुझ जाव कि,
आजादी बहुत बड़का चीज होला।
निमन आदमी से प्रेम ना रही आउर हाथ मजबूत ना रही,
त आगे चलके सबका रोवे के पड़ जाला।।
जेकर ना नीति ठीक बा, ना नियत ठीक बा,
ओइसन लोग देश के आ सबका के का बचाई।
ओइसन लोग के यदि ताकत भी बढ़ी,
त देश प्रेम त दूर रही, अपना परिवार में ही उलझ के रह जाई।। जय प्रकाश कुवंर
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