बच्चों की दुनिया
बच्चों की दुनिया ,मस्ती की दुनिया ,
गश्ती की दुनिया ,
हस्ती की दुनिया ।
चाहे हो ननिहाल में ,
चाहे हो खुशहाल में ,
चाहे हो बदहाल में ,
चाहे हो कंगाल में ।
फिर भी उनकी मस्ती है ,
नहीं होती कुछ सस्ती है ,
कुछ कुछ जबरदस्ती है ,
बच्चे खेल के अभ्यस्ती हैं ।
उनका अपना मान है ,
उनका अपना सम्मान है ,
उनका अपना अरमान है ,
दोस्तों में बसता प्रान है ।
नहीं इनको ज्ञान है ,
बच्चे तो नादान हैं ,
घर घर के अरमान हैं ,
बच्चे स्वयं भगवान हैं ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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