वे पिता होते हैं
वे पिता होते हैंचुपचाप सबकी बातें सुनते हैं
मन ही मन में सब हिसाब लगाते हैं
अपनी इच्छाओं को भूलकर
दूसरों की हर इच्छाओं को
पूरा करने की जीतोड़ कोशिश करते हैं
वे पिता होते हैं
एक वटवृक्ष की भांति अटल खड़े होकर
नन्हें पौधों को भरपूर छांव देते हैं
अपने दर्द को छुपाते हुए
बच्चों की आँखों में आँसू नहीं आने देते हैं
उनकी हँसी में
ढूंढ ही लेते हैं सारे जहां की खुशियां
वे पिता होते हैं
.-सविता शुक्ला
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