पृथ्वी पर लगता है अंधेरा छा रहा है।
क्षितिज में सूर्य डुबता जा रहा है।।समय तो ऐसे ही बदलता रहता है।
अंधेरे उजाले का क्रम चलता रहता है।।
अंधेरा तुम्हारी हताशा है।
उजाला तुम्हारी आशा है।।
अंधेरा में सब कुछ ठहर जाता है,
उजाला में सब कुछ बढ़ता जाता है।।
आशा ही तुम्हें जिन्दा रख पाएगा।
अंधेरे को भेद नया सूर्य निकल आएगा।।
अंधेरा सबकी गति हर लेता है।
यह केवल उल्लूओं और चमगादड़ को गति देता है।।
तुम उल्लू और चमगादड़ नहीं,
तुम पक्षियों में बाज हो।।
तुम केवल बीता हुआ कल और भविष्य नहीं ,
तुम कर्तव्य पथ पर चलता हुआ आज हो।।
जूगनू अंधेरा मिटा सकता नहीं,
दीपक पूरे घर को प्रकाशित कर सकता नहीं,
अत: अंधेरा को भगा, पूर्ण प्रकाशित करने के लिए,
प्रकाशवान सूर्य की ही जरूरत होती है।।
जय प्रकाश कुंअर
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