जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा
धरा अंतर सौंधी सुगंध,अनंत स्नेह प्रेम वंदन ।
अद्भुत अनुपम संस्कृति,
रग रग अपनत्व स्पंदन ।
अतिथि देवो भव मूल मंत्र,
उत्संग समरसता पसारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा,शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।
अदम्य साहस शौर्य गाथा
स्वाभिमान रक्षित इतिहास ।
प्रतिदिन उत्सविक परिवेश,
संघर्ष सह विजय उल्लास ।
सर्व धर्म समभाव सर्वत्र,
नित अंकुरित भाई चारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा,शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।
विविधता अंतरंग एकता,
जनमानस देशभक्ति सराबोर ।
शिक्षा विज्ञान अग्र कदम,
विकास क्षेत्र कीर्तिमानी भोर ।
नारी जगत सशक्ति पर्याय,
घर द्वार प्रगति उजियारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।
संबंध शोभा समर्पण भाव ,
मर्यादा संस्कार अनुपालन ।
परा परंपरा अमूल्य विरासत,
अंतःकरण आत्मीयता बिछावन ।
पर्यावरण संरक्षण चेतना अथाह,
वसुधैव कुटुंबकम् वत्सल धारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।
महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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