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आक्रोश

आक्रोश

स्वभाविक है
आपका आक्रोश
आक्रांता के विरूद्ध
मगर
गलत है
आपकी सोच
खत्म करने की प्रकति
नष्ट करने की सृष्टि
नोच डालने की
तितलियों परिंदों के पंख।

रहेगा क्या अंतर
आतताईयों और तुममें
वो तोडते हैं मन्दिर
भंबोडते हैं किसी मासूम को
दानवी दाँतों से।
और तुम भी तो
समर्थन कर रहे हो
उसी व्यवस्था का
कुछ अलग अन्दाज में।

चलो हम सब मिलकर
तलाशें
उन नर पिशाचों को
समाज के दुश्मनों को,
एकजुट करें
जन जन को
विरोध के लिये
और दें
अपने आक्रोश को
नई दिशा
राष्ट्र हित में।

अ कीर्तिवर्धन
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