मर्म-स्पर्शी गीतकार और प्रणम्य कथाकार थे पं विलास बिहारी झा:-डा अनिल सुलभ

मर्म-स्पर्शी गीतकार और प्रणम्य कथाकार थे पं विलास बिहारी झा:-डा अनिल सुलभ

  • स्मृति-पर्व पर साहित्य सम्मेलन ने किया स्मरण, दिया जाएगा स्मृति-मान, आयोजित हुई कवि-गोष्ठी ।

पटना, २० जून। कथा-साहित्य एवं पद्य में समान अधिकार रखने वाले मनीषी विद्वान पं विलास बिहारी झा एक अत्यंत मर्म-स्पर्शी गीतकार और बाल-साहित्य के प्रणम्य साहित्यकार थे। अपने सुदीर्घ जीवन का सर्वाधिक भाग उन्होंने साहित्य की सेवा में अर्पित किया। यश की लिप्सा से दूर रहे, इसलिए अपेक्षित सम्मान उन्हें नहीं दिया जा सका। साहित्य सम्मेलन इस वर्ष से उनकी स्मृति में एक नामित सम्मान आरंभ करेगा, जो बाल साहित्य में मूल्यवान कार्य करने वाले किसी योग्य हिन्दी-सेवी को प्रदान किया जाएगा।
यह बातें शुक्रवार को, पं झा के पुण्य-स्मृति-दिवस के अवसर पर, साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि विलास बिहारी जी छात्र-जीवन में ही 'कविता-सुंदरी' से प्रेम कर बैठे। जीवन-पर्यन्त साहित्य की एकांतिक-साधना की। उसी में रमे रहे। उनकी क़िस्सा-गोई भी रोचक-रोमांचक थी। इसीलिए उनकी बाल-कथाएँ ख़ूब लोकप्रिय हुईं।
समारोह के मुख्य अतिथि और दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर ने कहा कि विलास बिहारी जी एक बैंक अधिकारी थे। फिर भी उन्होंने जिस प्रकार से साहित्य की सेवा की, वह चकित करती है। उनका कथा-साहित्य ही नहीं उनके गीत भी मोहक हैं। उनका आकाशवाणी से भी गहरा संबंध था। उनके गीतों के अनेक प्रसारण हुए।
पं झा की पुत्री निभा चौधरी ने अपने पिता के साहित्यिक व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि वे काव्य और कथा साहित्य के साथ उपन्यास लेखन के लिए भी आदर पूर्वक स्मरण किए जाते हैं। 'अकाल पुरुष', 'नए धान की गंध' और 'लंगोटिया' की साहित्य समाज में व्यापक चर्चा हुई। उनकी आत्मकथा 'सुनो मनोरम' जो उपन्यास के शिल्प में लिखी गयी है साहित्य में विशेष स्थान रखती है। उनके बाल-उपन्यास 'आठ हज़ार वर्ष का बालक' के लिए उन्हें २००६ में भारत के सर्वश्रेष्ठ बाल-साहित्यकार का सम्मान मिला था।
देहरादून से पधारी वरिष्ठ साहित्यकार और समारोह की विशिष्ट अतिथि डा रंजीता सिंह 'फलक' ने कहा कि विलास बिहारी झा जैसे कवियों को स्मरण करना देवताओं की पूजा की तरह है। उनकी पुत्री निभा चौधरी अपने पिता की स्मृति को जीवित रखने की चेष्टा कर रही हैं, यह सराहनीय है।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम , डा पूनम आनन्द, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, विभा रानी श्रीवास्तव, डा अर्चना त्रिपाठी, नीता सहाय, मीरा श्रीवास्तव, आशा रघुदेव, रौली कुमारी, सुनीता रंजन, विनोद कुमार झा, सत्य प्रकाश आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।सम्मेलन के संरक्षक सदस्य ई अवध बिहारी सिंह, डा चंद्रशेखर आज़ाद, संजय कुमार, प्रियंका सिंह, श्याम मनोहर मिश्र, डा प्रेम प्रकाश, अमन वर्मा, विनय चंद्र, राणा सिंह, विजय कुमार दिवाकर , दिगम्बर जायसवाल, सिकंदरे आज़म, विजय कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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