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मैं लाख यतन करता हूँ लेकिन,

मैं लाख यतन करता हूँ लेकिन,

नींद मुझे आती ही नहीं।
सब यतन करके मैं थक गया,
तेरी सूरत दिल से है जाती ही नहीं।
मैंने मन्दिर में तुमको देखा था,
तुम पूजा करने आयी थी।
तेरे ध्यान में देव की मूर्ति थी,
तेरी सूरत दिल में समाई थी।
बस एक नज़र का खेला था,
मंदिर में लोगों का मेला था।
तुम भीड़ में कहीं गुम हो गई,
मैंने सोचा तुम चली गई।
तब से आंखें हैं खोज रहीं,
लगता है अब फिर मिलोगी नहीं।
कुछ सूरत ऐसी होती है,
जो आंखों में बस जाती हैं।
सोते जागते उसे देखने की,
दिल में ललक रह जाती है। 
 जय प्रकाश कुवंर
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