मगही-हिन्दी के मूर्धन्य रचनाकार बाबूलाल मधुकर वेंटिलेटर पर , बिहार सरकार से वेहतर इलाज की अपेक्षा |
मगही-हिन्दी के मूर्धन्य रचनाकार बाबूलाल मधुकर अपने दौर के विरल रचनाकार रहे हैं। जिन्होंने कविता, उपन्यास और साहित्य की अन्यान्य विधाओं को भी अपनी रचनात्मक प्रतिभा से एक अपेक्षित उंचाई प्रदान की है। उन्होंने ऐतिहासिक बिहार आंदोलन में अपनी सक्रियता से और खासकर अपनी मगही कविताओं के माधयम से अखिल भारतीय स्तर पर ख्याति अर्जित की।
बाबूलाल मधुकर का जन्म १५ सितम्बर १९४१ को पटना जिले के ढेकवाहा ग्राम में हुआ था | उनकी पहली नाटक संग्रह जो मगही भाषा की भी पहली नाटक है नयका भोर , उनके उपन्यास में रमरतिया , अलगंठवा प्रमुख थे और कविता संग्रह की बात करें तो लहरा, अंगूरी के दाग और रुकमिन के पाती प्रमुख रहें है |
पिछले कुछ दिनों से श्री मधुकर पटना के रेडियंट नर्सिंग होम कंकड़बाग़ पटना में भर्ती है | डाक्टरों की माने तो अगले ४८ घंटे में कुछ कहने की स्थिति में है | उनके परिजनों की माने तो उनके पुत्र अतुकांत ने बताया कि हमारे पिताजी जे पी आन्दोलन के क्रन्तिकारी कवियों में एक माने जाते है | उन्हों ने मगही के अलावे हिंदी में भी काफी कुछ लिखा है वो निरंतर साहित्य की सेवा करते रहें है आज उन्हें वेहतर चिकित्सीय सुविधा की अपेक्षा है इसलिए हम बिहार सरकार से अपेक्षा रखते है वो अपने स्तर से पहल कर वेहतर इलाज की व्यवस्था करवाने का कष्ट करें |
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