हिन्दू बँटा हुआ जाति में, कुछ निज स्वार्थ की बातों में,
कुछ गुर्जर जाटों में बँटते, कुछ स्वर्ण दलित की बातों में।दलितों में देखे दलित बँटे हुए, खापों में बँटते जाट यहाँ,
अगडे पिछड़े वैश्य उलझ रहे, ब्राह्मण श्रेष्ठता की बातों में।
जैन बोद्ध में सहिष्णुता अब, बीते दौर की बात लगे,
श्वेताम्बरी, दिगाम्बरी- स्थानकवासी पहचान लगे।
हिन्दू बना भक्त राम का, किसी को अयप्पा का ध्यान,
गणेश कहीं पूजनीय, कुछ को कार्तिकेय भगवान लगे।
देवी देवता सिमट गये हैं, धर्म गुरुओं के ख़ेमे में,
कुछ ने क्षेत्रवाद में बाँटा, पंजाबी बंगाली ख़ेमे में।
टुकड़े टुकड़े किए धर्म के, कुछ सत्ता के रखवालों ने,
बाँट दिया समस्त हिन्दू को, बस सत्ता के ख़ेमों में।
धर्म सनातन मात्र विश्व का, बाक़ी सब मत कहलाते,
बोद्ध- जैन सिक्ख धर्म भी, सब इसके अन्तर्गत आते।
इस्लाम के प्रवर्तक भी, कालान्तर में मूर्ति पूजक ही थे,
ईसा मूसा से पहले सूर्य उपासना, सनातनी ही कहलाते।।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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