---: भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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ये सच है कि
हम तुम्हें
उस दिन देखे
और अपना दिल
हार बैठे
नहीं लगता था मन
तब तुमसे करते थे बात
हो दिन दोपहर
या फिर रात मन
मार बैठे
और होते-होते ये सब
पता भी नहीं चला
कौन किधर गुजरा
और कैसे कब आंखें
चार बैठे
अब इधर तुम
रहने लगी गुमसुम
जबकि मैं
हूं तैयार लिए कुमकुम
ऐन वक्त पर सब
इंकार बैठे
तुम बिन मैं
कैसे रह पाऊं
समझा दो मुझे यार
ऐसी स्थिति में कहां जाऊं
इधर हम और सब उस
पार बैठे
भले तुम मत बोलो अभी
पर बता देना मुझे जरूर
कि आखिर कब
तू तैयार रहोगी निभाने दस्तुर
कि हम भी होकर
तैयार बैठे
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वलिदाद,अरवल (बिहार)
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