शीतल किया
देखो बदल छा रहेबरसने के लिए।
बदल गरजने लगे
सतर्क करने ले लिए।
मेघ मलारह गाने लगे
अब वर्षा के लिए।
भूमि जो प्यासी है
पानी के लिए।।
आस लगाये पानी की बैठे
नदी तलाब और जमीन।
कब होगी अब वर्षा
बतला दो इंद्रदेव तुम।
जैसे ही गिरती है
बूंदे पानी की।
सेन्धी सेन्धी खूशबू
आने लगती है।।
चारों तरफ छाने लगी
हरियाली और ठंडक।
पेड़ पौधे फूल पत्तीयां
सब खिल उठे।
गाँव शहर का भी
माहौल बदल गया।
अमल कमल से चेहरे
सब के खिल उठे।।
एक पानी की बूंद से
क्या क्या देखो बदला।
बिन पानी के जैसे
कितने वो शून्य थे।
पानी की बूंदों ने
कितनो का जीवन बदला।
गर्मी से देखो सबको
शीतल शीतल कर दिया।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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