गंगा की लहरें

गंगा की लहरें

डा उषाकिरण श्रीवास्तव

गो मुख से गंगा सागर तक
मां की लहरें लहरातीं है,
राहों में जो प्राणी आते
मां सबकी प्यास बुझाती है।


मां जननी है जीवन दायिनी
वो तारणहार कहलातीं है,
विकराल रूप धारण करती
मां क्रोध में जब आ जाती है।


हम सब उनकी पूजा करते
श्रद्धा-भक्ति से अर्चन करते,
मानव तन गंगा सेवन कर
हर पापों से मुक्ति पाते हैं।


वेद-पुराणों में लिखा हुआ
गंगा मां का गुणगान है,
गंगा जी भारत मां की गरिमा
देवों-ऋषियों का वरदान है ।


संपादक -वसुंधरा, मुजफ्फरपुर बिहार
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