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बहिरंग योग अन्तरंग योग का प्रथम चरण है

बहिरंग योग अन्तरंग योग का प्रथम चरण है

-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विश्व भर में योग के जो अभ्यास होते हैं वे सब प्रकार से सराहनीय हैं। भारत में योग की अत्यंत प्राचीन परंपरा है। इसलिये यहाँ योग के अन्तरंग पक्ष के भी जानकार लोगों की संख्या लाखों में है। उनमें से जो सचमुच गंभीरता से योगाभ्यास और योगसाधना में लगे हैं, वे तो कभी कुछ बोलते नहीं। परंतु बीच के लोग प्रायः यह टिप्पणी करते हैं कि यह उछलकूद भी कोई योग है। यह तो ‘योगा’ है यानी योग का प्रहसन है। परंतु यह सत्य नहीं।
प्रत्येक अनुशासन का एक पूरा सोपान होता है। उसमें सबसे निचली सीढ़ी प्रायः कुछ अनगढ़ सी होती है। परंतु वह अनिवार्य स्थिति है। सामान्य पढ़ाई में भी जब बच्चा क, ख, ग लिखना सीख रहा होता है या केवल रेखायें खींचना सीख रहा होता है तो वह अनगढ़ दशा ही होती है। परंतु अक्षरज्ञान के लिये वह अनिवार्य है। उसी से आगे की विद्यायात्रा होती है।
योग के नाम पर आसन सीखने वालों के कम से कम 30 से 40 प्रतिशत में प्राणायाम और योग का अर्थ जानने की इच्छा अवश्य हो जाती है। यह सही है कि अपनी शरारत और मक्कारी के लिये स्वयं यूरोप में बदनाम और तिरस्कृत बहुत से पादरी जगह-जगह क्रिश्चियन योगा के नाम से एक तमाशा चला रहे हैं और मुस्लिम योगा के नाम से भी यह कार्टूनपंती संभव है। परंतु इससे वज्र मूर्खों के सिवाय किसी को भ्रम नहीं होता और विश्व में सब जानते हैं कि योग का मूल भारत है और महर्षि पतंजलि हैं। पतंजलि का योगदर्शन ही योग का सबसे प्रमाणित आधारग्रंथ है। अतः जिसमें तनिक भी जिज्ञासा है, वह आगे-पीछे योगदर्शन का अध्ययन करता है। उसे ज्ञात हो जाता है कि सत्य, अहिंसा, अस्तेय, संयम और अपरिग्रह ये पाँच सार्वभौम महाव्रत हैं। जिन्हें आधुनिक यूरो-अमेरिकी भाषा में 5 सार्वभौम मानवमूल्य कहा जा सकता है। उन महाव्रतों का पालन वास्तविक योगाभ्यासी के लिये अनिवार्य है। अतः उसका आंशिक पालन भी जीवन को पवित्र और समृद्ध बनाता है। यह एक श्रेयस्कर विश्व के लिये वरदान है। इसके साथ ही आन्तरिक और बाहरी पवित्रता, चित्त का संतोष, श्रेष्ठ प्रयोजन के लिये द्वंद्व सहन और कष्ट सहन (तप), अध्यात्म शास्त्रों का अध्ययन और परम गुरू परमेश्वर जो सर्वव्यापी हैं और समस्त गुरूओं के गुरू हैं और सभी देवताओं के महादेव हैं तथा ध्यान किये जाने पर किसी भी साधक को प्रकाशपूर्ण मार्गदर्शन स्वयं देते हैं या उसके अनुरूप गुरू भेज देते हैं, उनकी श्रद्धापूर्ण भक्ति योग के अनिवार्य नियम है। इनका पालन करने पर आगे धारणा, ध्यान और समाधि के लिये देह को तैयार करने के लिये आसन एवं प्राणायाम हैं। क्योंकि देह तैयार नहीं होने पर पर्याप्त समय ज्ञान के लिये बैठना संभव नहीं है। प्राणायाम से वस्तुतः मन और चित्त की वृत्तियों पर बौद्धिक नियंत्रण का प्रारंभ होता है। विशेषकर बाहरी और आन्तरिक, दोनों प्रकार की श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया पर नियंत्रण इसमें सहायक है। अतः आसनों और प्रणायामों का महत्व निर्विवाद है। यदि पृथ्वी में 500 करोड़ लोग योगदिवस के निमित्त से योग करते हैं तो उनमें कम से कम 5 करोड़ निश्चित ही आसन और प्राणायाम में अच्छी तरह प्रवृत्त होते हैं। उनमें यदि 5 लाख भी वास्तविक योग साधक हो गये तो वह विश्व के लिये अद्भुत कल्याणकारी सिद्ध होगा। इसलिये योग दिवस का बहुत महत्व है।
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