असली ख़ज़ाना: खुद होना
आज की दुनिया में, सोशल मीडिया और दिखावे की संस्कृति का बोलबाला है। लोग अपनी ज़िंदगी की चकाचौंध भरी तस्वीरें साझा करते हैं, भले ही वो असलियत से दूर हों। इस दिखावे की दौड़ में हम खुद को ही भूल जाते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि असली ख़ज़ाना क्या है? क्या ये भौतिक सुख-सुविधाएँ हैं, या फिर दिखावटी शानो-शौकत? नहीं, असली ख़ज़ाना है खुद को स्वीकार करना और अपनी असलियत में जीना।
जब हम खुद को छिपाने की कोशिश करते हैं, तो हम अपनी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खो देते हैं। हम डरते हैं कि लोग हमें क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे। लेकिन ये डर हमें कभी आगे नहीं बढ़ने देते।
इसके बजाय, हमें अपनी खूबियों और खामियों को स्वीकार करना चाहिए। हमें खुद पर विश्वास रखना चाहिए और अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
यह आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। जब हम खुद को स्वीकार करते हैं, तो हम मुक्त हो जाते हैं। हम अपनी रचनात्मकता को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंच सकते हैं।
तो देर किस बात की? आज ही से खुद को स्वीकार करना शुरू करें। अपनी असलियत में जिएं और दुनिया को दिखाएं कि आप कौन हैं। यही असली ख़ज़ाना है, जो आपको सच्चा सुख और संतुष्टि देगा।
याद रखें, आप अकेले नहीं हैं। ऐसे कई लोग हैं जो खुद को स्वीकार करने और अपनी असलियत में जीने का प्रयास कर रहे हैं।
तो आइए, हम सब मिलकर मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाते हैं जहाँ लोग दिखावे के बजाय खुद को स्वीकार करने में गर्व महसूस करते हैं।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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