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नागरिक धर्म निर्वहन को, पुकार रही मां भारती

नागरिक धर्म निर्वहन को, पुकार रही मां भारती

स्वच्छ स्वस्थ भव्य परिवेश,
प्रकृति संग गहरा नाता ।
सबल तन मन अनुपमा,
सदा भारत भाग्य विधाता ।
सर्व धर्म समभाव पटल,
स्नेह प्रेम भाईचारा निहारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

भौतिक मृग मरीचिका तज,
नैसर्गिकता संग गठबंधन ।
अहम भूमिका वृक्षारोपण,
जीवन सुरभि सम चंदन ।
दया करुणा जीव जंतु जगत,
मानवता शीर्ष भाव बिसारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

मोबाईल यथोचित प्रयोग,
हर व्यक्ति संचेतन बिंदु ।
समय महत्ता सदा अनमोल ,
सदुपयोग सफलता सिंधु ।
निज संस्कृति संस्कार वंदना,
वरिष्ठजन श्री चरण पखारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

शिक्षित सभ्य परिवार समाज,
विकसित राष्ट्र परम धुरी ।
सकारात्मकता रज रज व्याप्त,
नारी सशक्ति प्रगति पंखुरी ।
स्नेहिल तिरंगी छात्र छाया अंतर,
देश भक्ति प्रेरणा बन हलकारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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