साधुता की राजनीति
या राजनीति में साधुताघालमेल है भाई
राम का राज्याभिषेक होते होते
बनवास हो गया
भरत पर पादुका का भार हो गया
कैकेयी की बदनामी में
छिपी हुई थी राम की प्रतिष्ठा
दशरथ का प्राण त्याग ही तो
नीव था रामराज्य का
आज सत्ता में सत्यता का
जब जब देखता हूँ अभाव
मेरा विद्रोही स्वभाव
कुछ कहने को करता है
फिर याद करता हूँ
अपना प्राचीन इतिहास और भूगोल
तौलता हूँ पहले अपने आप को
दबे पांव लौट आता हूँ अपने घर
बलिदान की करता हूँ समीक्षा
क्योंकि अभी भी फ़कीरी मुझ में
सही से समाई नही है
जनता के अन्दर चेतना मुरझाई हुई है
अंधभक्ति का दानव
जब पल रहा है मेरे ही अंदर
ऐसी स्थिति में आज कल
उपदेश देने में कोई भलाई नही है।
अरविन्द कुमार पाठक"निष्काम"
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