काशी स्थित द्वादशादित्य गाथा*

काशी स्थित द्वादशादित्य गाथा

द्वादश आदित्य हैं काशी में दर्शन करिए
दर्शन करिए पूजन करिए वंदन करिए।
लोलार्क कुंड भदैनी में ,लोलार्कादित्य भदैनी में
सबसे पहले आदित्य हैं ये,इनका पूजन अर्चन करिए।१।
जंगमबाड़ी का खारी कुआं ,जहां विमलादित्य का दर्शन कर
भगवान सूर्य यहां रहते हैं ,इनका आशीष ग्रहण करिए।२।
सूरज कुंड मोहल्ले में , एक सांबादित्य का मंदिर है
ये सूर्य मंदिर के पास ही है ,सूर्य कुंड में कर स्नान चर्म रोगों से मुक्ति पा लिजिए।३।
उत्तरार्कादित्य का मंदिर तो, बकरिया कुंड के पास ही है
बकरिया कुंड का नाम असल में, कहते सभी अर्क कुंड ही है
पूस माह के रविवार को ,चलो मेला देखन को चलिए।४।
जहां सूर्यदेव ने आदिकेशव को गुरु मान किए आराधन
ये घाट आदिकेशव का है, यहीं पादोदक है तीर्थ जहां
स्नान यहीं करके पूजन ,पापों से छुटकारा लीजिए।५।
विनता के आराध्य खखोलादित्य कामेश्वर गली में है
कथा कद्रु विनता की यहां से कहते हैं सब जुड़ी ही है
दासी कद्रु की विनता बन ,सूर्य आराधन की सो सुनिए।६।
त्रिलोचन महादेव मंदिर के ,पास में अरुणादित्य जी हैं
विनता पुत्र अरुण ने सूर्य की, मूर्ति स्थापित की है।
अरुण किये तप सूर्यदेव की, अतः ये अरुणादित्य ही हैं।
अरुणादित्य का दर्शन पूजन आशीर्वाद ग्रहण करिए।७।
मयूखादित्य जहां काशी में , वहीं सूर्य ने तपस्या की
शिव पार्वती ने वर उन्हें देकर, मयूखादित्य ये नाम धरी
रविवार को पूजन करिए, फिर बीमार नहीं पड़िए।८।
संकटा घाट में यमराजा ने, सूर्य की बड़ी तपस्या की
शिव के साथ भगवान सूर्य की, मूर्ति यहां स्थापित की
मंगल दिन तिथि चतुर्दशी को इनका तो पूजन कीजिए
पापों से मुक्ति यमयातना से भी ,छुटकारा लीजिए।९।
गंगादित्य हैं ललिता घाट पे, सूर्य यहां हर दिन रहते
भागीरथी गंगा की सूर्य भी हरपल हैं स्तुति करते।
गंगादित्य का इसी घाट पर कर स्नान पूजन करिए|१०|
वृद्धादित्य हैं मीरघाट पर ,वृद्धहारित कोई ब्राह्मण थे।
सूर्य प्रतिमा स्थापित कर ,यहीं तपस्या करते थे।
हो प्रसन्न भगवान सूर्य ने उसे तारुण्य का वर दे दिया
विशालाक्षी मंदिर के दक्षिण ओर ये स्थित सुन लीजिए।११।
बारहवें आदित्य द्रौपदादित्य थे अक्षय वट के पास
विश्वनाथ मंदिर के दक्षिण दंडपाणि मूर्ति के पास
हनुमान मंदिर में अक्षयवट के नीचे था आदित्य निवास
अब यह प्रतिमा नव निर्मित शिव कचहरी में है रखी हुई
जहां भी हैं ये हे सूर्य भक्त इनका पूजन अर्चन करिए।
जब भी काशी जाएं सुशील द्वादशादित्य दर्शन करिए।१२।
*हिये तराजू*
ये तराजू भी सभी के ,पास होना चाहिए।
तौले जो हर शब्द को ,फिर बोले ऐसा चाहिए।
ये तराजू वो तराजू ,है नहीं जो दुकान पर
ह्रदय में स्थित है इससे ,तौलना ही चाहिए।
अच्छे बुरे कई शब्द हैं ,सबकी जगह है अलग-अलग
किस जगह क्या बोलिए,ए सोचना तो चाहिए।
गालियां भी शुभ है ,उसका गान होना चाहिए।
पर घड़ी वो विवाह का हो ,नारि मुख से ही चाहिए।
शब्द में बड़ी शक्ति है,ये बनती को भी बिगाड़ दे।
शब्द में बड़ी शक्ति है,ये बिगड़ी को भी सुधार दे।
असर क्या होगा हमें ,यह सोचना ही चाहिए।
बिन विचारे हर समय ,बड़बड़ न करना चाहिए।
हंसी और मजाक का, समय और रिश्ता होता है।
सब समय और सब से ,इसका होना भी नहीं चाहिए।
सबकी अपनी गरिमा है ,सबका ही एक स्थान है।
किसी शब्द से सम्मान तो,किसी शब्द से अपमान है।
किसी शब्द में गर प्यार तो,किसी शब्द में दुत्कार है।
किसी शब्द से सृष्टि हुई,किसी शब्द से संहार है।
कोई शब्द गर इसपार है तो, कोई शब्द भी उस पार है।
युद्ध का आह्वान भी ,कोई शब्द ही तो करता है।
संधि का प्रस्ताव में भी , शब्द ही तो होता है।
शब्द में भी वजन है होता,अगर इसे तौलिए।
आ गया जो समझ हो तो,अपने मुंह को खोलिए।
समझ आने पर भी डर से, बंद मुख मत कीजिए।
सत्य जो है शिष्टता से, सबके आगे खोलिए।
शब्द जितना भारी होगा,उतना भारी ही असर।
ए असर अच्छा रहेगा ,या बूरा ये सोचिए।
शब्द के ही प्रभाव से, दुर्जन सुजन बन जाते हैं।
शब्द के ही प्रभाव से,सत्संगती अपनाते हैं।
बड़ों के प्रति शब्द में भी ,पूरा ही सम्मान हो।
छोटों के प्रति शब्द में भी, लाड़ प्यार दुलार हो।
समवयस्कों के संग सारे ,शब्द ही चल जाते हैं।
किंतु टूटे मित्रता ना ,इसका हरदम ध्यान हो।
दंड वाले शब्द को भी ,सोचकर ही बोलिए।
हो सुधार जिससे सुनिश्चित, ऐसे शब्द ही बोलिए।
ये तराजू संतुलन में हो ये ,इसका ध्यान हो।
बोलने के पहले, इससे ही लगा एक लगाम हो।

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