भारत के कोने-कोने में लाखों मंदिर हैं। मंदिरों ने हमारी संस्कृति को संरक्षित रखा है; लेकिन वर्तमान समय में मंदिरों में भक्ति कार्यों के लिए भक्तों से प्राप्त दान को एफ.डी. के रूप में बैंक में रखा जाता है। पूजा-पाठ के लिए प्राप्त धन बैंक में चला जाता है और धर्म के काम नहीं आता। वहीं दूसरी ओर जर्जर हो चुके जीर्ण मंदिरों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। अत: भक्तों द्वारा दान किए गए धन का उपयोग बैंक में पड़े रहने के बजाय जीर्ण-शीर्ण मंदिरों के पुनर्निर्माण में किया जाना चाहिए। समस्त महाजन संघ के कार्यकारी ट्रस्टी श्री. गिरीश शाह ने कहा इस पुनर्निर्माण कार्य को करते समय प्राचीन मंदिरों की संरचना को संरक्षित करना आवश्यक है ।'वैश्विक हिंदू राष्ट्र महोत्सव' के पांचवें दिन वे 'मंदिरों के उचित प्रबंधन' पर बोल रहे थे ।
इस अवसर पर 'मंदिर का अर्थशास्त्र' विषय पर बोलते हुए श्री. अंकित शाह ने कहा, “मुफ्त देने की पद्धति कार्ल मार्क्स द्वारा शुरू की गई थी और वोट की राजनीति से विकसित हुई थी। इसके विपरीत भारतीय अर्थशास्त्र मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाता है। सनातन धर्म में शिक्षा व्यवस्था मंदिरों के वित्त से चलती थी। मन्दिर की अर्थव्यवस्था से ग्रामों का निर्माण हुआ। भारत में शिक्षा व्यवस्था मंदिर अर्थव्यवस्था से चलती थी। ऋषि-मुनि पाठ्यक्रम निर्धारित करते थे। मंदिर अर्थव्यवस्था के विनाश के कारण ही भारत में साम्यवाद और पूंजीवाद आए । इसलिए सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए समाज को एक बार फिर से मंदिर आधारित अर्थव्यवस्था के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है ।
पुजारियों को मंदिर में आने वाले हिंदुओं को तिलक लगाने के साथ धार्मिक शिक्षा भी देनी चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो हिंदुओं का धार्मिक गौरव बढेगा, उनका मनोबल बढेगा और सभी एकजुट होंगे । वर्तमान समय में हिंदू धर्म के बारे में गैर-धार्मिकों द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार को नष्ट करने के लिए पुरोहितों से धर्मग्रंथों का प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। मंदिर जाते समय कुछ नियम होने चाहिए। उत्तर प्रदेश में 'पावन चिंतन धारा आश्रम' के पू. प्रा. पवन सिन्हा गुरुजी का दावा है कि मंदिर में साफ-सफाई के बिना किसी व्यक्ति की चेतना को जागृत नहीं किया जा सकता है ।
इस मौके पर पूर्व चैरिटी कमिश्नर दिलीप देशमुख ने कहा, ''मंदिरों को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा ताकि उनका प्रबंधन सरकार अपने हाथ में न ले ले ।‘‘ इसमें मुख्य रूप से ट्रस्टियों को 'महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950' का पालन करना होगा, ट्रस्टियों को विवादों से बचने की कोशिश करनी चाहिए, मंदिर को अच्छी तरह से प्रबंधित करना चाहिए, मंदिरों को अपना बजट समय पर तैयार करना चाहिए, मंदिरों को अपनी अचल और चल संपत्ति का रजिस्टर रखना चाहिए वगैरह। इन चीजों के साथ-साथ भक्तों को उन्हीं मंदिरों में दान करना चाहिए जो सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं ।’’
'वैश्विक हिंदू राष्ट्र महोत्सव' के अवसर पर कांची कामकोटि पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती और प.पू. गोविंददेव गिरिजी महाराज ने आशीर्वाद संदेश भेजा है । इस समय पू. प्रा. पवन सिन्हागुरुजी ने सनातन संस्था की गुजराती 'ई-बुक' 'अध्यात्म का प्रस्तावनात्मक विवचन' लोकार्पित की ।
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