मेरे पिता

मेरे पिता

अँजनी कुमार पाठक
सूक्ष्म रूप से अन्तर्मन मेँ सदा ही रहते मेरे पिता
आना जाना रीति जगत की सदा ही कहते मेरे पिता
रह जाती सिर्फ कृति धरा पर सुपथ पर चलना सीखो
एक शाम भूखे को खिलाओ भूख मिटाना तुम सीखो
प्रेम शान्ति और समरसता का भाव जगाते मेरे पिता
सूक्ष्म रुप से अन्तर्मन मेँ सदा ही रहते मेरे पिता
सच चाहते अपने बच्चों से मान -सम्मान वँश का फैले
ऐसा काम सदा ही करना नेक इन्सान जाने तुझे पहले
सँस्कार जीवन का पथ है याद दिलाते मेरे पिता
सूक्ष्म रूप से अन्तर्मन मेँ सदा ही रहते मेरे पिता
घुल रहा है जहर हवा मेँ समय समय पर पेड लगाना
साँसों की क्या होती है कीमत दुनियाँ ने है अब जाना
राष्ट्रहित और मानवता का पाठ सिखाते मेरे पिता
सूक्ष्म रूप से अन्तर्मन मेँ सदा ही रहते मेरे पिता
पेडोंँ पर फल जब लद जाता है अहँकारी वो बन जाता है
हर मानव मेँ प्रेमभाव हो समयचक्र यह सिखला जाता है
सुख दुख तो आते ही रहते धैर्यवान बनाते मेरे पिता
सूक्ष्म रूप से अन्तर्मन मेँ सदा ही रहते मेरे पिता
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