एहू लगन में बबुआ,
लागता कुंआरे रह गइलन।देखते देखते बुबुआ,
अब पैंतीस साल के भइलन।।
पढ़ लिख के बबुआ,
कौनों नौकरी त करत नइखन।
बेकार लइका आज कल
तिलकदहरू का नजर में चढ़त नइखन।।
उपर से बाबूजी के,
तिलक के मंगाई बा।
कमासुत सुंदर बहू संग चार चाका गाड़ी देवे,
ओइसन तिलकदहरू के जोहाई बा।
अपना लइका के हैसियत,
बाबूजी भुलात बाड़े।
मुंह फाड़ के तिलक के मांग,
हर लगन में बढ़वले जात बाड़े।।
अब लागता कि बबुआ का देह पर,
हरदी ना चढ़े पइहें।
बाबूजी का बड़का डिमांड के चलते,
उन कर बबुआ कुआंरे रह जइहें।।
जय प्रकाश कुंअर
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