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मतदान

मतदान

राजनीति की लम्बी बातें,
घर बैठे ही करते हो।
परिवर्तन कुछ अगर देखना,
वोट से फिर क्यों डरते हो।।
पांच साल पर मौका आता,
घर से निकल कर वोट करो,
कोई अगर पसंद नहीं है,
वोट देकर के चोट करो।।
यही तो मौका होता है,
जब परिवर्तन ला सकते हो।
जनतंत्र में घर में बैठे
कुछ भी नहीं कर सकते हो।।
वोट देकर परिवर्तन लाना,
यह है जनतान्त्रिक अधिकार तुम्हारा।
घर बैठे आलोचना करने से ,
मौका नहीं आता दुबारा।।
देखा तो अब तक जाता है,
लगभग साठ प्रतिशत लोग बाहर आते हैं।
बाकी के चालीस प्रतिशत लोग,
घर में बैठे वोट न देकर,
लम्बी बातें और आलोचना करते ही रह जाते हैं।।
जब मतदान अधिकार है सबका,
फिर वोट न देना ठीक नहीं ।
बाहर आ जो लोग सरकार चुनते हैं,
घर में बैठे आलोचना करना ठीक नहीं।।
खिसक रहा है हाथ से मौका,
घर बैठे आलोचना ही करते रह जाओगे।
झेलना पड़ेगा जो सरकार आएगी,
अगले पाँच साल बाद हीं फिर मौका पाओगे।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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