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आया पर कविता लिख दूं

आया पर कविता लिख दूं 

सुशील कुमार मिश्र
आया पर कविता लिख दूं या नौकर की स्तुति लिख दूं 
घर में सारी सुविधाएं हैं ,अच्छी खासी इनकम है
दाय भी है नौकर भी है पर गृह मंत्री ही गायब हैं ।
बच्चों की हो देख रेख,आया घर में रख दीं है।
आया सब कुछ करती है पर, मां की ममता गायब है।
मां की ममता क्या होती है, बच्चे अब ये क्या जानें।
मां देती संस्कार पुत्र को ,भला इसे ये क्यों मानें।
इन्हें खिलाना इन्हें पिलाना ,आया ही तो करती है।
मां तो इन्होंने यही सुना है, कहीं नौकरी करती हैं।
मां पर कविता पढ़कर बच्चे, कैसे ये स्वीकार करें।
ए इसको स्वीकार करें तब, जब मां का इन्हें प्यार मिले।
मम्मी देर रात आती है,दफ्तर से छुट्टी के बाद।
डैडी भी तो आ पातें हैं, बच्चों के सोने बाद।
दोनों हैं बस एटीएम ही, पैसे तो दे जाते हैं।
बच्चों की हर फरमाइश को ,पूरा कर-कर जाते हैं।
दोनों ऐसा ही हैं मानते, पैसे से सब मिलते हैं।
बच्चों को जो कुछ भी चाहिए,पैसे से ही मिलते हैं।
पैसे से आया मिलती हैं, पैसे से नौकर मिलते हैं।
लेकिन मां और पिता ये दोनों पैसे से क्या मिलते हैं?
मां का फिगर बिगड़ न जाए, स्तनपान कराया नहीं।
पिता के कन्धे पर ये चढ़कर,कभी घूमने गया नहीं।
बोतल वाला दूध मिला जब भूख लगी पीने के लिए।
नौकर के कंधे पर चढ़कर निकला यह घूमने के लिए।
मां की लोरी क्या होती है अब यह बच्चे क्या जानें।
निंदिया रानी गीत को सुनकर यह सो जाना क्या जानें।
मां की ममतामई छवि ये आया में देखा करते।
कंधे वह मजबूत पिता के नौकर में देखा करते।
राजा रानी वाले किस्से मां के मुंह से सुना नहीं।
साहस और पराक्रम वाली बातें पिता ने कहा नहीं।
खाना क्या अच्छा लगता है बच्चे को आया जाने।
बातों में बहलाकर ज्यादा कौर खिलाना वो जाने।
मां पर कविता इन्हें क्यों भाए आया पर कविता लिख दो।
पिता की स्तुति छोड़ो अब तो नौकर की स्तुति लिख दो।
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