Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अब,मैं तुम्हें चाहने लगा

अब,मैं तुम्हें चाहने लगा

अंतरंग विमल प्रवाह,
प्रीत पथ भव्य लगन ।
मृदुल मधुर चाह बिंब,
तन मन अनंत मगन ।
निहार अक्स अनुपमा,
हृदय मधुर गाने लगा ।
अब,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।


जनमानस व्यवहार पटल,
सर्वत्र खनक सनक ।
परिवार समाज रिश्ते नाते,
सबको हो गई भनक ।
हर घड़ी हर पहर मुझे,
प्रीत नशा छाने लगा ।
अब,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।


दृष्टि सृष्टि परिध क्षेत्र ,
हर जगह तुम्हारा रूप ।
राग रंग श्रृंगार परिधान,
तुम्हारी रूचि अनुरूप ।
अधरों पर सबसे पहले,
नाम तुम्हारा आने लगा ।
अब,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।


अंतर्मन घुंघुरू मृदुल लय,
मिलन विरह अनूप छवि ।
दर्शन आनन रमणीयता ,
मस्त मलंग तरंग नवि ।
तुम्हारी तरुण सौरभ संग,
जगत मोह जाने लगा ।
अब,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।


महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ