पिता

पिता

डा उषाकिरण श्रीवास्तव

पिता की उंगली नहीं मिली
फिर भी मैं चलना सीख लिया,
मां मेरी ममता की मूरत
प्यार में पलना सीख लिया।


अपनी संस्कृति क्या होती
मां ने ही तो संस्कार दिया,
पग-पग कांटे-कील चुभोकर
मुझे सीढ़ी चढ़ना सीखा दिया।


रात-रात भर जाग के मां ने
मुझको निश्चित सोने दिया ,
दुनिया के उलहन ताने को
अपने माथे लगा लिया।


रिश्ते-नाते को समझाया
पढ़ा-लिखा कर बड़ा किया,
ईश्वर से उपर होती मां
प्रेम हृदय में जगा दिया।


संपादक -वसुंधरा, मुजफ्फरपुर, बिहार
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