भारतीय राजनीति की करवट - क्या अगस्ता वेस्टलैंड में घूस लेने वालों को सजा मिलेगी-मनोज कुमार मिश्र
लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
हाल में ही G7 की बैठक इटली में हुई थी। इसमें भारत को भी न्योता दिया गया था। इस बैठक के दौरान मेलोडी की बड़ी चर्चा रही। हंसी मजाक और उपहास आलोचना के बीच एक बड़ी सी खबर दब गई। खबर है कि इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी ने भारत सरकार को वे मिलान कोर्ट ऑफ अपील के दस्तावेज उपलब्ध करा दिए हैं जिनमे अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद मामले में घूस लेने वालों के नाम अंकित हैं। वैसे तो यह निर्णय फरवरी 2013 में ही आ गया था, जब अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के सीईओ ब्रूनो स्पग्नोलिनी और अगस्ता की मूल कंपनी फिन्मेकेनिका के चेयरमैन गुइसेपे ओरसी को मिलान कोर्ट के आदेश के बाद गिरफ्तार किया गया था, इन दोनो को दो बिचौलियों गुइडो हश्के और कार्लो गेरोसा के साथ मिलान की कोर्ट ऑफ अपील जो भारत के हाईकोर्ट के समकक्ष होती है ने अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार, घूसखोरी और मनी लांड्रिंग के लिए जो भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर सौदे में किया गया था, के लिए दोषी ठहराया था। पर तत्कालीन यूपीए सरकार ने बड़ी सावधानी से इसे दबवा दिया था।
मोदी की सरकार बनने के बाद जुलाई 2014 में ED ने पीएमएलए कानून के तहत एक केस दर्ज किया था।पहले इसकी जांच सीबीआई कर रही थी। इस केस में 70 मिलियन यूरो के संभावित घूस की आशंका जताई गई थी। इस रकम को क्रिश्चियन माइकल जेम्स और गुइडो हशके कार्लो गेरोसा के खातों के द्वारा दिया गया था।
जो 30 मिलियन यूरो ट्रांसफर किए गए उसमे से 12.4 मिलियन यूरो मॉरीशस के इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजी के खाते में आए जो राजीव सक्सेना की कंपनी थी। राजीव माइकल का पार्टनर था और इसे भारत में किकबैक के रूप में पेमेंट में दर्शाया गया। सीबीआई के एफिडेविट में 30 मिलियन यूरो को वायु सेना ऑफिसर्स, नौकरशाहों, राजनीतिक दल के नेताओं और एक राजनीतिक परिवार के बीच वितरित दिखाया गया था। लेकिन इस पूरे भुगतान का विवरण इटली में ही दब के रह गया था क्योंकी वहां की सरकार ने इन दस्तावेजों को भारत के साथ साझा करने से इंकार कर दिया था।
ज्ञातव्य है कि 2014 में मोदी सरकार बनने के 8 महीने पहले इटली की एक अदालत ने इस मामले में 4 लोगों को दोषी पाया था जिसमे एक प्रमुख सीईओ, इटली की डिफेंस कंपनी के एक चेयरमैन और दो बिचौलिए शामिल थे। लेकिन आरोपियों के सारे वक्तव्य, अपील की पूरी कॉपी और अदालत के अंतिम निर्णय की प्रति जो भारत के राजनीतिक परिदृश्य में भूचाल ला सकती थी, उपलब्ध नहीं कराई गई। सूत्रों के अनुसार इटली ने उनकी अदालत का विस्तृत निर्णय जो 225 पृष्ठों का है और इस निर्णय से संबंधित सारे दस्तावेजों की प्रति जो इस मामले में घूसखोरी को दर्शाती है, को प्रधानमंत्री या उनके किसी विश्वासपात्र नौकरशाह को सौंप दिया है। इसमें कथित तौर पर एक AP और एक राजनीतिक परिवार का जिक्र है। AP को आसानी से अहमद पटेल के तौर पर पहचाना जा सकता है और राजनीतिक परिवार को सभी जानते हैं। यह भारत को राजनीति में कद्दावरों की पोल खोलने का दम रखता है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने G7 के संबोधन में कहा था कि वो इतने खुश कभी नहीं थे। अब देखना यह है की क्या भारत को जनता को ये नाम जो परोक्ष रूप में सब को मालूम हैं प्रत्यक्ष में देखने को मिलेंगे क्या? उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि सुप्रीम कोर्ट उसमे भी अडंगा डालेगा क्या? देखते हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है।-
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