नये दौर में नया दौर, कुछ ऐसा आया,

नये दौर में नया दौर, कुछ ऐसा आया,

घर बेटी का, क़ब्ज़ा माँ ने वहीं जमाया।
सुबह शाम फ़ोन पर बातें, चिन्ता करती,
सो रहे दामाद तो, बेटी काम क्यों करती?
थकी लगी बेटी बातों से, माँ घबरा जाती,
पकड़ ट्रेन पहली वह, बेटी के घर जाती।
परदेश में निज बेटा, बात नहीं सुनता है,
बूढ़ा बाप अकेला घर में, तारे गिनता है।
बेटी की ससुराल जमाया, डेरा जाकर माँ ने,
दामाद परेशान, पत्नी बस माँ का कहना माने।
तरस गया रोटी को, दोनों की बात चल रही भारी,
बढ़ा तनाव पति पत्नी में, अब अलग होने की तैयारी।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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