मित्रता है ना के बराबर

मित्रता है ना के बराबर

मित्रता है ना के बराबर इन्सानियत ना रहा
स्वार्थ के वशीभूत हैं सब प्रेम भाव ना रहा
खून के प्यासे बने हैं धोखाधड़ी भी बढ गई
कृष्ण-सुदामा की मित्रता इस जग मेँ ना रहा
जातिवाद भेदभाव इन्सानियत के दुश्मन बने हैं
मुश्किलों मेँ साथ देनेवाला इस धरा पर कम रहा
समानता अधिकार है सँविधान है कह रहा
राजनीति हो रही कलँकित कोई सगा ना रहा
आग महल मेँ लगी थी देखा सब बुझाते रहे
महलवालोँ की मित्रता ऐसे लोगों से ना रहा
काम आते हैं पडोसी मित्रता करके देखिये
रिश्ते -नाते दूर के वक्त पर ना खडा रहा
मित्रता सबसे रखें दुख -सुख के भागी भी बने
इन्सानियत मजहब हमारा कहने भर को है रहा। -
अँजनी कुमार पाठक
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