पिता की नेक सलाह

पिता की नेक सलाह

रामपुर बाजार में रामचंद्र हलवाई की मिठाई की दुकान थी। दुकान खुब चलती थी और दुकान का कारोबार वो स्वयं सम्भालते थे। उनके दो पुत्र थे, हीरालाल और मोतीलाल, जिनकी शादी वे अपनी पत्नी के जीवित रहते ही कर दिये थे। उनकी पत्नी का स्वर्गवास खराब स्वास्थ्य के कारण जल्दी ही हो गया था। पत्नी के आलसी बने हुए रहने के कारण निरंतर खराब स्वास्थ्य और असामयिक मृत्यु ने रामचंद्र के दिल और दिमाग पर बुरा असर डाला था और अब वे अपने बच्चों को स्वास्थ्य के प्रति खुब सजग रहने को कहते थे। वे उनको समय पर सुबह में उठने और नित्यकर्म से उबरने के बाद रोज सुबह शाम समय पर ठहलने की हमेशा शिक्षा देते थे। अपने मिठाई के दुकान में सहयोग देने के लिए भी उनसे कहते थे। घर की बहुओं को भी घर का काम स्वयं करने और सबको समय पर भोजन आदि कराने के लिए व्यवस्था करने के लिए परामर्श दिया करते थे। उनका मानना था कि समय पर सब काम करने से सबका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और घर तथा व्यवसाय भी अच्छा से चलेगा।
उनके दोनों लड़कों में हीरालाल बड़ा था और मोटा शरीर का था। छोटा लड़का मोतीलाल शरीर से दुबला पतला था। दोनों लड़कों में आपसी भाईचारा और प्रेम था। हीरालाल पिता के साथ मिठाई की दुकान पर बैठता था और काम में हाथ बंटाता था। परंतु मोतीलाल को एक जगह बैठना अच्छा नहीं लगता था, अतः वह पिता से अनुमति लेकर लोगों के घर में शादी ब्याह के मौके पर मिठाई आदि बनाने का हलवाई का काम करता था। हीरालाल एक जगह बैठे बैठे कुछ आलसी किस्म का आदमी बन गया था। वह खाना खाने के बाद तुरंत वही पर सो जाता था। उसे ठहलना एक दम अच्छा नहीं लगता था। परंतु मोतीलाल अपने काम के अलावा खाना खाने के बाद रोज सुबह शाम कुछ दुर टहलता था, फिर अपने बिस्तर पर आकर सो जाता था। इस तरह दोनों की दिनचर्या चल रही थी।
इधर घर की बहुएं भी सब सुविधा पाकर अपने सासु माँ की तरह आलसी बन गयी थीं और किसी भी दिन रात का खाना उनके घर में ग्यारह बारह बजे के पहले नहीं होता था। हालांकि अपने जीवन काल में रामचंद्र हमेशा सब कुछ समय पर करने और स्वास्थ्य के लिए सलाह देते चले आए। लेकिन घर की बहुओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और किसी भी दिन घर में खाना जल्दी नही बना। घर में लेट खाना बनने और लेट खाना खाने के वजह से छोटे लड़के मोतीलाल को देर रात ठहलने निकलना पड़ता था, क्योंकि वो खाना खाने के बाद बिना कुछ दुर ठहले सो नही सकते थे। बड़े भाई हीरालाल को खाना खाने के बाद टहलने की आदत नहीं था अत: उनको कोई परेशानी नहीं थी, परंतु मोतीलाल को काफी असुविधा होती थी। बाजार और मुहल्ला के लोग मोतीलाल पर कटाक्ष करते थे कि तुमहारा भाई खाने के बाद वही सो जाता है तो वह कितना मोटा और हेल्दी है और तुम रात को भी टहलते रहते हो तो तुम कितने दुबले पतले हो। पर इसका परवाह न कर मोतीलाल अपने नियम अनुसार चलता रहा।
कुछ समय बाद उनके पिता रामचंद्र जी का देहांत हो गया। अब मिठाई दुकान का पुरा कारोबार बड़ा लड़का हीरालाल देखने लगा और मोतीलाल पुर्ववत अपने काम में लगा रहा।
पिता के गुजरने के बाद भी परिवार के लोगों के काम करने के समय में कोई परिवर्तन नहीं आया और अब भी रात का खाना दुकान बंद होने के बाद सब साथ ही लेट से करते थे। मोतीलाल के रात का टहलने का सिलसिला जारी रहा।
एक बार रामपुर बाजार में कुछ दंगा फसाद हुआ जिसके कारण बाजार इलाके में प्रसाशन ने कर्फ्यू लगा दिया। रात को किसी को घर से बाहर रास्ते पर निकलने की मनाही थी। इधर मोतीलाल रोज की तरह रात का खाना खाने के बाद रात के बारह बजे रास्ते पर टहलने निकल गया और पुलिस के हाथों पकड़ा गया। जब वह देर तक घर में नहीं लौटा तो परिवार वाले परेशान हुए लेकिन उस कर्फ्यू वाली रात में कुछ कर नहीं सके। सुबह जब वे नजदीकी लोकल थाने पहुंचे तो वहाँ मोतीलाल को पाए। उनलोगों द्वारा सारी सच्चाई बताने और पुलिस अधिकारियों से निवेदन करने पर मोतीलाल को छुड़ा कर घर लाए। उनको पुलिस अधिकारियों ने भी देर रात खाना खाने के बाद टहलने निकलने से मनाही की। अब सबको अपने पिता के नेक सलाह का ख्याल आ रहा था कि क्यों उनके पिता सब काम उचित समय पर करने के लिए सलाह देते थे।
घर का सब काम उचित समय पर करने से ही घर में शांति और व्यवस्था कायम रह सकती है और सबका स्वास्थ्य भी ठीक रह सकता है और परिवार सुखी सम्पन्न बना रह सकता है। अनुचित समय पर किया गया काम लाभ के जगह प्रायः नुकसानदायक ही सिद्ध होता है।
जय प्रकाश कुवंर
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