" यतो धर्मः ततो जयः "
"यतो धर्मः ततो जयः" - यह संस्कृत का एक प्रसिद्ध श्लोक है जिसका अर्थ है "जहाँ धर्म है, वहाँ विजय है।" यह वाक्य सदियों से भारत में प्रेरणा का स्रोत रहा है, और आज भी इसका महत्व उतना ही प्रासंगिक है।
धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों का पालन करना नहीं है। इसका अर्थ है सत्य, न्याय, करुणा और अहिंसा जैसे मूल्यों का पालन करना। जब हम धर्म का मार्ग अपनाते हैं, तो हम सही और गलत के बीच अंतर करना सीखते हैं। हम दूसरों के प्रति दयालु और करुणामय बनते हैं। हम अहिंसा का पालन करते हैं और सभी जीवों के प्रति सम्मान रखते हैं।
धर्म हमें जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देता है। जब हम मुश्किलों में होते हैं, तो धर्म हमें आशा और प्रेरणा प्रदान करता है। यह हमें सिखाता है कि हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा सही काम करना चाहिए।
धर्म हमें एक बेहतर इंसान बनाता है। यह हमें दूसरों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण और समझदार बनाता है। यह हमें क्षमा करने और दूसरों को माफ करने की शक्ति देता है।
यदि हम सभी धर्म के मार्ग पर चलें, तो दुनिया निश्चित रूप से एक बेहतर जगह बन जाएगी। हम अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज का निर्माण कर पाएंगे।
सुखार्थं सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः।
सुखं नास्ति विना धर्मं तस्मात् धर्मपरो भव॥
सब प्राणियों की प्रवृत्ति सुख के लिए होती है, (और) बिना धर्म के सुख मिलता नही । इस लिए, तू धर्मपरायण बन ।
आइए हम सब मिलकर धर्म के मार्ग पर चलें और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने का प्रयास करें।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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